SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचों भेदोंका स्वरूप उपचार विनयका स्वरूप वैयावृत्य तपका स्वरूप स्वाध्याय तपका स्वरूप लौकिक फलकी इच्छासे स्वाध्याय करना निष्फल है । कामशास्त्रादिकी स्वाध्यायका निषेध जो आत्मा को जानता है वह शास्त्रको जानता है । व्युत्सर्ग तपका स्वरूप देहपोषक मुनिके कायोत्सर्ग तप नहीं हो सकता जीवन पर्यन्त किये गये कायोत्सर्ग के तीन भेद और उनका स्वरूप कुछ समय के लिये किये गये कायो - त्सर्गके दो भेदोंका स्वरूप कायोत्सर्गके बत्तीस दोष ध्यानका स्वरूप और भेद आर्तध्यान और रौद्रध्यान धर्मध्यान और शुकुध्यान आर्तध्यानके चार भेदोंका विवेचन रौद्रध्यानके Jain Education International 33 22 "" विषय सूची पृष्ठ ३४७ "" ३४८ ३५० ३५१ 33 ३५२ ३५३ ३५५ "" 35 ३५६ 35 ३५७ "" ३५९ ३६१ आर्त और रौद्र ध्यानको छोडकर धर्मध्यान करनेका उपदेश धर्मका स्वरूप धर्मध्यान किसके होता है । धर्म धर्मध्यानके चार भेदोंका स्वरूप दस भेदका 39 पदस्थ ध्यानका पिण्डस्थ ध्यानका रूपस्थ ध्यानका रुपातीत ध्यानका तथा कार्य For Private & Personal Use Only 33 39 35 शुक्रुध्यानका लक्षण पृथक्त्ववितर्क शुक्रुध्यानका स्वरूप 99 "" 55 एकत्ववितर्क 39 सूक्ष्मक्रिया व्युपरतक्रियानिवृत्ति परमध्यानकी प्रशंसा तथा महत्त्व तपोंके कथनका उपसंहार ग्रन्थकार के द्वारा ग्रंथरचनाका उद्देश कथन बारह अनुप्रेक्षाओंका माहात्म्य अन्तिम मंगल संस्कृत टीकाकार की प्रशस्ति 33 "" "" "" 99 पृष्ठ ३६४ 99 ३६५ "" ३६७ "" ३७० ३७५ ३७७ ३७८ ३७९ ३८० ३८२ ३८३ ३८५ ३९० ३९३ 35 ३९४ 33 ३९५ www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy