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पांचों भेदोंका स्वरूप उपचार विनयका स्वरूप
वैयावृत्य तपका स्वरूप
स्वाध्याय तपका स्वरूप
लौकिक फलकी इच्छासे स्वाध्याय
करना निष्फल है ।
कामशास्त्रादिकी स्वाध्यायका निषेध जो आत्मा को जानता है वह शास्त्रको
जानता है ।
व्युत्सर्ग तपका स्वरूप देहपोषक मुनिके कायोत्सर्ग तप नहीं हो सकता
जीवन पर्यन्त किये गये कायोत्सर्ग के तीन भेद और उनका स्वरूप कुछ समय के लिये किये गये कायो - त्सर्गके दो भेदोंका स्वरूप कायोत्सर्गके बत्तीस दोष ध्यानका स्वरूप और भेद
आर्तध्यान और रौद्रध्यान
धर्मध्यान और शुकुध्यान आर्तध्यानके चार भेदोंका विवेचन
रौद्रध्यानके
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आर्त और रौद्र ध्यानको छोडकर धर्मध्यान करनेका उपदेश
धर्मका स्वरूप
धर्मध्यान किसके होता है ।
धर्म
धर्मध्यानके चार भेदोंका स्वरूप
दस भेदका
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पदस्थ ध्यानका
पिण्डस्थ ध्यानका
रूपस्थ ध्यानका
रुपातीत ध्यानका
तथा कार्य
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शुक्रुध्यानका लक्षण
पृथक्त्ववितर्क शुक्रुध्यानका स्वरूप
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एकत्ववितर्क
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सूक्ष्मक्रिया व्युपरतक्रियानिवृत्ति परमध्यानकी प्रशंसा तथा महत्त्व तपोंके कथनका उपसंहार
ग्रन्थकार के द्वारा ग्रंथरचनाका उद्देश
कथन
बारह अनुप्रेक्षाओंका माहात्म्य अन्तिम मंगल
संस्कृत टीकाकार की प्रशस्ति
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