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________________ 94 १६१ - कार्तिकेयानुप्रेक्षा - पृष्ठ पृष्ठ अतीत, अनागत, और वर्तमान पर्यायके भेद और उनका स्वरूप कथन १७३ पर्यायोंकी संख्या १५४ द्रव्यमें विद्यमान पर्यायोंकी उत्पत्ति द्रव्यमें कार्य कारण भावका कथन १५५ __ माननेमें दूषण १७४ प्रत्येकवस्तु अनन्त धर्मात्मक है। १५६ अविद्यमान पर्याय ही उत्पन्न होती है। , अनेकान्तवाद, स्याद्वाद, और सप्त- द्रव्य और पर्यायोंमें भेदाभेद १७५ भंगीका स्वरूप १५७-१५८ सर्वथा भेद माननेमें दूषण अनेकान्तात्मक वस्तु ही कार्य ज्ञानाद्वैतवादमें दूषण १७६ कारी है। १५८-१५९ शून्यवादमें दूषण १७७ सर्वथा एकान्तरूप वस्तु कार्यकारी बाह्य पदार्थ वास्तविक है। १७८ नहीं है। सामान्यज्ञानका स्वरूप १७९ नित्यैकान्तवादमें अर्थ क्रियाकारी केवलज्ञानका स्वरूप नहीं बनता। ज्ञान सर्वगत होते हुए भी आत्मामें क्षणिकैकान्तवादमें अर्थ क्रियाकारी ___ ही रहता है। १८० नहीं बनता। १६२ । ज्ञान अपने देशमें रहते हुए ही अनेकान्तवादमें ही कार्यकारण ज्ञेयको जानता है। १८० भाव बनता है। १६३ मनःपर्यय ज्ञान और अवधिज्ञान अनादिनिधन जीवमें कार्यकारण देशप्रत्यक्ष है। __ भावकी व्यवस्था - मतिज्ञान प्रत्यक्ष भी है और परोक्ष भी है।,, स्वचतुष्टयमें स्थित जीवही कार्यको करता है १६४ इन्द्रियज्ञानका विषय १८२ जीवको परस्वरूपस्थ माननेमें हानि १६५ मतिज्ञानके ३३६ भेदोंका विवेचन १८३ ब्रह्माद्वैतवादमें दूषण इन्द्रियज्ञानका उपयोग क्रमसे होता है। १८४ तत्त्वको अणुरूप माननेमें दूषण १६७ वस्तु अनेकान्तात्मक भी है और द्रव्यमें एकत्व और अनेकत्वकी व्यवस्था , एकान्त रूप भी है। १८५ सत् का स्वरूप नयदृष्टिसे अनेकान्त स्वरूपका विवेचन १८६ उत्पाद और व्ययका स्वरूप १६९ अनेकान्तके प्रकाशक श्रुतज्ञानका स्वरूप १८७ द्रव्य ध्रुव कैसे है। १७० श्रुतज्ञानके भेद रूप नयका स्वरूप १८८ द्रव्य और पर्यायका खरूप नय वस्तुके एक धर्मको कैसे कहता है। १८९ गुणका स्वरूप १७१ अर्थनय, शब्दनय और ज्ञाननयका द्रव्योंके सामान्य और विशेषगुण विवेचन १९० द्रव्य गुण और पर्यायोंका एकत्वही सुनय और दुर्नयका विवेचन वस्तु है। १७२ | अनुमानका स्वरूप १९१ १८१ १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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