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________________ विषय सूची १९८ .१९९ अनुमान भी नय है। १९२ | आर्यवंशमें जन्म लेकर भी उत्तम कुल नयके भेद मिलना दुर्लभ है। उत्तम कुल पाकर द्रव्यार्थिक नयका स्वरूप भी धनहीन होता है। २०८ द्रव्यार्थिक प्रयके दस भेद १९३ धनी होकर मी इन्द्रियोंकी पूर्णता होना पर्यायार्थिक नयका स्वरूप दुर्लभ है। इन्द्रियोंकी पूर्णता होने पर्यायार्थिक नयके छै भेद १९४ । पर भी शरीर रोगी होता है। २०८ नैगम नयका स्वरूप | नीरोग शरीर पाकर भी अल्पायु होता है संग्रह नयका स्वरूप १९५ - और दीर्घजीवी होकर भी व्रतशील व्यवहार नयका स्वरूप १९६ धारण नहीं करता २०८ ऋजुसूत्र नयका स्वरूप १९७ शीलवान होकर भी साधु समागम शब्दनयका स्वरूप दुर्लभ है। २०८ समभिरूढ नयका स्वरूप साधुसमागम पाकर भी सम्यक्त्वकी एवंभूत नयका स्वरूप प्राप्ति दुर्लभ है। २०९ नयोंके द्वारा व्यवहार करनेसे लाभ २०० सम्यक्त्वको धारण करके भी चारित्र तत्त्वका श्रवण मनन आदि करनेवाले धारण नहीं करता और चारित्र मनुष्य विरल हैं। २०१ धारण करके भी उसे पालनेमें तत्त्वको जाननेवाला मनुष्य २०२ असमर्थ होता है। स्त्रीके वशमें कौन नहीं है, इत्यादि प्रश्न ,, रत्नत्रय धारण करके भी तीव्र कषाय उक्त प्रभोंका समाधान २०३ ___ करनेसे दुर्गतिमें जाता है। , लोकानुप्रेक्षाका माहात्म्य मनुष्य पर्यायको अतिदुर्लभ जानकर ११ बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा २०४-२१२ मिथ्यात्व और कषायको छोड़ना जीव अनन्तकाल तक निगोदमें रहकर __ पृथिवी कायादिमें जन्म लेता है। २०४ चाहिये। त्रसपर्यायकी दुर्लभता देवपर्यायमें शील और संयमका अभाव है। ,, त्रसपर्यायमें भी पञ्चेन्द्रिय होना मनुष्यगतिमें ही तप ध्यानादि होते हैं । २११ दुर्लभ है। २०५ ऐसा दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर भी जो पश्चेन्द्रिय होकरभी संज्ञी होना दुर्लभ २०६ विषयोंमें रमते हैं वे अज्ञानी हैं। ,, संही होकर भी नरक गति और तिर्यश्च- रत्नत्रयमें आदर भाव रखनेका गतिमें दुःख भोगता है। २०६-२०७ ___ उपदेश .. २१२ दुर्लभ मनुष्य पर्याय पाकर मी पापी १२ धर्मानुप्रेक्षा २१२-३९६ म्लेंछोंमे जन्म लेता है। २०७ । सर्वज्ञदेवका स्वरूप २१२ २०९ २१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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