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(५४) काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, और कार्मण काययोग, इस प्रकार ग्यारह आस्रव होते हैं। "णवजोय णोकसाया अटुंतकसाय देसजमे" इस पद की व्याख्या आगे की गाथा से जानना चाहिए।
तसऽसंजमहीणऽजमा सचे सगतीस संजमविहीणे। आहारजुगूणा पणवणं सबे य चक्खुजुगे।। ६२॥ त्रसासंयमहीना अयमाः सर्वे सप्तत्रिंशत् संयमविहीने।
आहारकयुगोनाः पंचपंचाशत् सर्वे च चक्षुर्युगे।। णवजोय णोकसाया अटुंतकसाय देसजमे तसऽसंजमहीणऽजमा सव्वे सगतीस- देसजमे- संयमासंयमे सप्तत्रिंशत्प्रत्यया भवन्ति। ते के ? णवजोयेत्यादि। मनोवचनयोरष्टौ औदारिककायस्यैक एवं नव, तथा णोकसाया- हास्यादयो नवनो-- कषायाः, अटुंतकसाय -- अष्थै अन्त्याः प्रत्याख्यानसंज्वलन-क्रोधमानमाया-लोभाः कषायाः तसऽसंजमहीणऽजमा सव्वे- त्रसवधरहिता अन्येऽसंयमा अविरतयः सर्वे एकादश एकत्रीकृताः सप्तत्रिंशत्। संजमविहीणे आहारजुगूणा पणवण्णं- असंयमे आहारजुगूणा - आहारकयुगोना आहारकाहार-कमिश्रद्वयोनाः, पणवण्णंपंचपंचाशत् प्रत्यया भवन्ति। इति संयममार्गणायां प्रत्ययाः। सव्वे य चक्खुजुगे-- च पुनः चक्षुर्युगे चक्षुरचक्षुर्दर्शनद्वये नानाजीवापेक्षया सर्वे सप्तपंचाशत्प्रत्यया भवन्ति।।६२॥
अन्वयार्थ- (देसजमे) देश संयम में (णवजोय) नौ योग (णोकसाय) नौ नोकषाय (अटुंतकसाय) प्रत्याख्यान क्रोध आदि अंत की आठ कषायें (तसऽसंजमहीण) त्रस जीवों के घात रूप असंयम से रहित (अजमा सव्वे) शेष सभी ग्यारह अविरति इस प्रकार (सगतीस) सैंतीस आस्रव होते हैं। (संजमविहीणे) असंयम में (आहारजुगूणा) आहारक द्विक को छोड़कर शेष (पणवण्णं) पचपन आस्रव होते हैं। (चक्खुजुगे) चक्षु और अचक्षु दर्शन में (सव्वे) सभी अर्थात् सत्तावन आस्रव होते
भावार्थ - देश संयम में नौ योग नौ नोकषाय प्रत्याख्यान क्रोधादि अंत की आठ कषायें त्रस जीवों के घात रूप असंयम से रहित शेष ग्यारह अविरति इस प्रकार सैंतीस आस्रव होते हैं अर्थात् चार मनोयोग, चार वचनयोग आठयोग्र
औदारिककाययोग ये नौ योग, हास्यादि नव नौकषाय, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ ये आठ कषायें त्रस वध से रहित शेष ग्यारह
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