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(५३)
भवन्ति। अथ व्यक्तिः - अष्टमनोवचनयोगौदारिक-संज्वलन-चतुष्कहास्यादिनवेति द्वाविंशतिः प्रत्ययाः परिहारसंयमे भवन्तीत्यर्थः। संजलणेत्यादि। सुहमे य- च पुनः सूक्ष्मसाम्परायसंयमे, दसय हुंतिदश प्रत्ययाः स्युः। ते के ? एकः संज्वलनलोभ आदिमनवयोगा एवं दश।।६०॥
अन्वयार्थ- (परिहारे) परिहार विशुद्धि संयम में पूर्व गाथोक्त चौबीस आस्रवों में से (आहारयदुग रहिया) आहारक द्विक से रहित (बावीस) बाईस आस्रव (हवंति) होते हैं। (सुहुमे य) सूक्ष्मसाम्पराय संयम में (संजलणलोहमादिणव जोगा) संज्वलन लोभ और चार मनोयोग, चार वचन योग औदारिक काययोग ये नव योग इस प्रकार कुल (दसय) दस आस्रव (हुंति) होते हैं।
भावार्थ- परिहार विशुद्धि संयम में चार संज्वलन और नौ नोकषाय ये तेरह कषाय, चार मनोयोग, चार वचन योग, औदारिक काययोग ये नौ योग इस प्रकार कुल बाईस आस्रव होते हैं। सूक्ष्म साम्पराय संयम में संज्वलन लोभ कषाय, चार मनोयोग, चार वचनयोग और औदारिक काययोग ये नौ योग इस प्रकार कुल दस आस्रव होते हैं।
ओरालमिस्सकम्मइयसंजुया लोहहीण जहखादे। णवजोय णोकसाया अद्भुतकसाय देसजमे॥ ६१॥
औदारिकमिश्रकार्मणसंयुता लोभहीना यथाख्याते।
नवयोगा नोकषाया अष्टान्तकषाया देशयमे।। जहखादे- यथाख्यातसंयमे सूक्ष्मसाम्परायोक्ता ये दश ते, ओराल मिस्सेत्यादि- औदारिकमिप्रकायकार्मणकायाभ्यां द्वाभ्यां संयुक्ता द्वादश भवन्ति, एते द्वादश लोहहीणा- संज्वलनलोभरहिताः क्रियन्ते तदा एकादश भवन्ति । के ते? अष्टौ मनोवचनयोगा औदारिकौदारिकमिश्रकार्मणकायास्त्रय एते एकादश यथाख्यातसंयमिनां भवन्तीत्यर्थः। “णवजोय णोकसाया अटुंतकसाय देसजमे। इयमर्धगाथा तस्याः परिपूर्णसम्बन्ध उत्तरगाथां ज्ञेयः।। ६१।।
अन्वयार्थ- (जहखादे) यथाख्यात संयम में, सूक्ष्मसाम्पराय में कहे गये दस आस्रव तथा (ओरालमिस्सकम्मइयसंजुया) औदारिक मिश्र काययोग और कार्मण काययोग से सहित बारह आस्रव, इन बारह में से (लोहहीण) संज्वलन लोभ कम करने पर ग्यारह आस्रव होते हैं। (णवजोय णोकसाया अळंतकसाय देसजमे) इस पद की व्याख्या आगे की गाथा से जानना चाहिए।
भावार्थ- यथाख्यात संयम में चार मनोयोग, चार वचनयोग औदारिक
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