________________
(४०)
कुमतिश्रुतसुमतिश्रुतावधिज्ञानोपयोगाः पंच अचक्षुर्दर्शनावधिदर्शनोपयोगौ द्वौ एवं सप्त। पुण्णे दस- पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्ते उपयोगा दश भवन्ति। के ते दश? केवलज्ञानदर्शनवा अन्ये दशोपयोगाः स्युः। जीवेसु उवओगा- जीवसमासेषु • द्वादशोपयोगा यथाप्राप्ति प्ररूपिताः।। ४५॥
अन्वयार्थ ४५ - (दससु) दस (जीवेसु) जीव समासों में (कुमइदुगा) कुमति, कुश्रुत ज्ञानोपयोग (अचक्खु) अचक्षु दर्शनोपयोग ये (तिय) तीन उपयोग होते हैं। (दुगे) दोजीव समासों में (चक्खुजुदा) चक्षुदर्शनोपयोग सहित (चदु) चार उपयोग होते हैं। (सण्णिअपुण्णे) संज्ञी अपर्याप्तक जीवों में (सग) सात उपयोग तथा (पुण्णे) संज्ञी पर्याप्त जीव समास में (दस) दस उपयोग (हवंति) होते हैं।
भावार्थ- एकेन्द्रिय सूक्ष्म के पर्याप्त, अपर्याप्त एकेन्द्रिय बादर के पर्याप्त अपर्याप्त, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रियों के पर्याप्त, अपर्याप्त, चतुरिन्द्रय और अंसज्ञी पंचेन्द्रिय के अपर्याप्त इन दस जीव समासों में कुमति ज्ञानोपयोग, कुश्रुत ज्ञानोपयोग तथा अचक्षु दर्शनोपयोग ये तीन उपयोग होते हैं। चतुरिन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव समासों में कुमति, कुश्रुत ज्ञानोपयोग, चक्षु, अचक्षु दर्शनोपयोग ये चार उपयोग होते हैं। पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्त जीवों के कुमति, कुश्रुत, मति, श्रुत, अवधि ज्ञानोपयोग तथा चक्षु, अचक्षुदर्शनोपयोग इस प्रकार सात उपयोग होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव समास में केवलज्ञानोपयोग तथा केवल दर्शनापयोग को छोड़कर शेष दस उपयोग होते हैं।
इति जीवसमासेषूपयोगा न्यस्ताः। इस प्रकार जीवसमासों में उपयोग का कथन पूर्ण हुआ।
अथ चतुर्दशगुणस्थानेषु यथासंभवं योगा निरूप्यन्ते;
मिच्छदुगे अयदे तह तेरस मिस्से पमत्तए जोगा। दस इगिदस सत्तसु णव सत्त सयोगे अयोगी य।। ४६।।
मिथ्यात्वद्विके अयते तथा त्रयोदश मिश्रे प्रमत्तके योगाः।
दशैकादश सप्तसु नव सप्त सयोगे अयोगिनि च।। मिच्छेत्यादि। मिथ्यात्वप्रथमगुणस्थाने सासादनगुणस्थाने च तथा अयदेचतुर्थगुणस्थाने, तेरस- इति, आहारकआहारकमिश्रयोगाभ्यां विना अन्ये त्रयोदश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org