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नव जीव समास स्थानों में एक-एक योग होता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त इन चार जीवों समासों में औदारिक काययोग और अनुभय वचन ये दो योग होते हैं। पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्त जीव समास में चार मन, चार वचन योग, औदारिक काय योग, वैक्रियक काय योग, आहारक काय योग और आहारक मिश्र काय योग इस प्रकार बारह योग होते हैं। एक भव से दूसरे भव में जाने पर अर्थात् विग्रह गति में एक कार्मण काय योग होता है। एकेन्द्रिय सूक्ष्म बादर द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय असंज्ञी एवं पंचेन्द्रिय संज्ञी इन सातों अपर्याप्त जीव समासों में औदारिक मिश्र काय योग तथा पर्याप्त जीव समासों में औदारिक काय योग होता है।
इति जीवसमासेषु योगा उपनयस्ताः । इस प्रकार जीव समासों में योग कहे गये हैं।
अथ चतुर्दशजीवसमासेषु यथासंभवमुपयोगा लिख्यन्ते;-- चौदह जीव समासों में यथासंभव उपयोग लिखते हैं।
कुमइदुगा अचक्खु तिय दससु दुगे चदु हवंति चक्खुजुदा। सण्णिअपुण्णे पुण्णे सग दस जीवेसु उवओगा।। ४५।।
कुमतिद्विको अचक्षुः त्रयः दशसु द्विके चत्वारो भवन्ति।
चक्षुर्युताः संश्यपर्याप्ते पर्याप्ते सप्त दश जीवेषु उपयोगाः।। कुमइदुगा अचक्खु तिय दससु- इति, दशसु जीवसमासेषु कुमतिकुश्रुतज्ञानोपयोगौ द्वौ अचक्षुर्दर्शनोपयोगश्चैक एते त्रय उपयोगा भवन्ति। ते दशजीवसमासाः के येष्वेते त्रय उपयोगा जायन्ते तदाह- एकेन्द्रियसूक्ष्मा पर्याप्तःएकेन्द्रियसूक्ष्मपर्याप्तः- एकेन्द्रियबादरपर्याप्तः, द्वीन्द्रियापर्याप्तः द्वीन्द्रियपर्याप्तः, त्रीन्द्रियपर्याप्तः, त्रीन्द्रियापर्याप्तः, चतुरिन्द्रियापर्याप्तः, पंचेन्द्रियासंज्ञिजीवापर्याप्तः। एतेषु दशसु जीवसमासेषु कुमतिकुश्रुतज्ञानोपयोगी द्वौ अचक्षुर्दर्शनोपयोगश्चैते त्रयो भवन्तीति स्पष्टार्थः। दुगे चदु हवंति चक्खु जुदा- इति, द्वयोर्जीवसमासयोः चतुरिन्द्रियपर्याप्तपंचेन्द्रिया-संज्ञिजीवपर्याप्तयोश्चत्वार उपयोगा भवन्ति। ते के ? पूर्वोक्ताः कुमतिकुश्रुताचक्षुर्दर्शनोपयोगास्त्रयः, चक्खु जुदा- इति, चक्षुदर्शनोपयोगसहिता एवं चत्वार उपयोगाः स्युः। सण्णि अपुण्णे पुण्णे सग दस अत्र यथासंख्यालंकारः, पंचेन्द्रियसंज्यपर्याप्ते सग - इति, सप्तोपयोगा भवन्ति। ते के ?
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