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शेष सात उपयोग होते हैं। मिश्र सम्यक्त्व में मति, श्रुत और अवधि ज्ञानोपयोग ये तीन उपयोग सम्यक्त्व एवं मिथ्यात्व रूप होते हैं अतः तीन ज्ञानोपयोग और चक्षु, अचक्षु तथा अवधि दर्शनोपयोग मिलाकर छह उपयोग होते हैं। सासादन सम्यक्त्व में तीन कुज्ञानोपयोग चक्षु और अचक्षु दर्शनोपयोग इस प्रकार पाँच उपयोग होते हैं। इसी प्रकार मिथ्यात्व में भी सासादन सम्यक्त्व के समान पाँच उपयोग होते हैं।
दस सण्णि असण्णीए चदु पढमाहारए य बारसयं । मणचक्षुविभंगूणा णव अणाहारेय उवओगा॥ ४२ ।।
दश संज्ञिनि असंज्ञिनि चत्वारः प्रथमे आहारके च द्वादशकं।
मनुश्चक्षुर्विभंगोना नव अनाहारे च उपयोगाः।। दस सण्णि इति। केवलज्ञानदर्शनद्वयरहिता अपरे देशोपयोगा संज्ञिजीवे भवन्ति। असण्णीए चदु पढमा- असंज्ञिजीवे प्रथमाश्चत्वार उपयोगा भवन्ति । ते के ? कुमतिद्वयं चक्षुरचक्षुर्दर्शनद्वयमेवं चत्वारः। इति संज्ञिमार्गणा। आहारए बारसयं आहारकजीवे उपयोगानां द्वादशकं भवेत्। मणचक्खुविभंगूणा णव अणाहारे उवओगा- अनाहारकजीवे मनःपर्ययज्ञानचक्षुर्दर्शनविभंगज्ञानैरूना रहिता अन्ये नवोपयोगा भवन्ति।। ४२।।
अन्वयार्थ ४२- (सण्णि) संज्ञीजीवों के (दस) दस उपयोग होते हैं (असण्णीए) असंज्ञी जीवों के (चदुपढमा) प्रथम चार उपयोग होते हैं (आहारए बारसयं) आहारक जीवों के बारह उपयोग होते हैं (य) और (अणाहारेय) अनाहारक जीवों के(मणचक्खुविभंगूणा) मनः पर्यय ज्ञानोपयोग चक्षुदर्शन और विभंगावधि ज्ञानोपयोग को छोड़कर (णव उवओगा) नौ उपयोग होते हैं।
___ भावार्थ- संज्ञी मार्गणा में संज्ञी जीवों के केवलज्ञानोपयोग एवं केवलदर्शनोपयोग को छोड़कर शेष दस उपयोग होते है असंज्ञी जीवों के चक्षु , अचक्षु दर्शनोपयोग कुमति एवं कुश्रुत ज्ञानोपयोग इस प्रकार ये चार उपयोग होते है।आहारक जीवों के पूरे बारह ही उपयोग होते है तथा अनाहारक जीवों के मनः पर्ययज्ञानोपयोग विभंगावधि ज्ञानोपयोग और चक्षुदर्शनोपयोग को छोड़कर शेष नौ उपयोग होते हैं।
. इति चतुर्दशमार्गणासु द्वादशोपयोगा निरूपिताः। इस प्रकार चौदह मार्गणाओं में बारह उपयोग कहे। .. अथ चतुर्दशजीवसमासेषु पंचदशयोगाः कथ्यन्ते;
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