SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२५) हैं- (जहखादे) यथाख्यात संयम इस पद का सम्बन्ध आगे की गाथा से है। भावार्थ- प्रथम संयम युगल में अर्थात् सामायिक संयम और छेदोपस्थापना संयम में कार्मण काययोग, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, औदारिक मिश्न काययोग से रहित चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक काययोग, आहारककाययोग और आहारक मिश्र काययोग, इस प्रकार ग्यारह योग होते हैं। परिहार विशुद्धि और सूक्ष्म सांपराय संयम में नौ योग होते हैं-- चार मनोयोग, चार वचन योग एक औदारिक काययोग ये नौ योग जानना चाहिए। और पुनः देशसंयम में उपर्युक्त नौ योग अर्थात् चार मनोयोग, चार वचनयोग और एक औदारिक काययोग इस प्रकार नौ योग होते हैं। यथाख्यात इस पद का सम्बन्ध आगे की गाथा से है। वेउवियदुगहारयदुगूण इगिदस असंजमे जोगा। तेरस आहारयदुगरहिया चक्षुम्मि मिस्सूणा।। २८।। वैक्रियिकद्विकाहरकाद्विकोना एकादश असंयमे योगाः।. त्रयोदश आहारकद्विकरहिताः चक्षुषि मिश्रोनाः।। जहखादे- यथाख्यातचारित्रे, वेउव्वियेत्यादिवैक्रियिकवैक्रियकमिश्राहारकाहारकमिश्रोना एकादश भवन्ति। ते के? अष्टौ मनोवचनयोगा औदारिकतन्मिश्रकार्मणकाययोगा एवं एकादशयोगा यथाख्यातसंयमे भवन्तीत्यर्थः। असंजमे जोगा तेरस आहारयदुगरहिया - असंयमे आहारकयोगद्वयरहिता अन्ये त्रयोदशयोगा भवन्ति । इति संयममार्गणा। चक्खुम्मि मिस्सूणा इति पदस्योत्तरगाथायां सम्बन्धः।। २८॥ २८ अन्वयार्थ- (जहखादे) यथाख्यात संयम में (वेउव्वयदुगहारयदुगूण) वैक्रियिक द्विक, आहारक द्विक से रहित (इगिदस) ग्यारह योग (असंजमे) असंयम में (आहारयदुगरहिया) आहारद्विक रहित (तेरस) तेरह (जोगा) योग होते हैं। (चक्खुम्मि मिस्सूणा) इस पद का सम्बन्ध आगे की गाथा से है। भावार्थ- यथाख्यात संयम में वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्र काययोग, आहारक काययोग और आहारक मिश्र काययोग से रहित ग्यारह योग पाये जाते हैं। वे इस प्रकार से हैं- चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग और कार्मण काययोग इस प्रकार ग्यारह योग यथाख्यात संयम में होते हैं। असंयम मार्गणा में आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग इन दो योगों से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy