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(२४)
होते हैं । ( इगिदसi) इस पद का सम्बन्ध उत्तरगाथा से जानना चाहिये ।
भावार्थ - केवलज्ञान में सात योग होते हैं - वे इस प्रकार से हैं-- औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग, कार्मण काययोग, सत्यमनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्य वचनयोग, अनुभय वचनयोग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग कार्मणकाययोग ये तीन योग केवलज्ञान में कैसे संभव है ? ये तीन समुद्धात की अपेक्षा संभव है और कहा भी है कि
गाथार्थ ( 9 ) - (दंडदुगे) दंडयुग्म में (ओरालं) औदारिक काययोग होता है। (कवाडजुगले) कपाट प्रतर युग्म में औदारिक काययोग होता है । (पयरसंवरणे) प्रतरसमुद्धात संकोचन में (मिस्सोरालियं भणियं ) औदारिक मिश्र काययोग होता है। (सेसतिए) प्रतर, लोक पूरण और लोक पूरण संकोचन इन तीनों में कार्मण काययोग जानना चाहिये। इस प्रकार ज्ञान मार्गणा पूर्ण हुई । "इगिदसयं" इस पद का सम्बन्ध उत्तरगाथा से जानना चाहिए।
कम्मइयदुवेगुब्बियमिस्सोरालूण
पढमजमजुयले । परिहारदुगे णवयं देसजमे चेव जहखादे ।। २७ ।। कार्मणद्विवैक्रियिकमिश्रौदारिकोनाः प्रथमयमयुगले ।
परिहारद्विके नवकं देशयमे चैव यथाख्याते ॥ इगिदसयमिति पूर्वगाथास्थितं पदं, एकादशयोगाः प्रथमसंयमयुगले सामायिकच्छेदोपस्थापनाद्वये भवन्ति । ते के ? कम्मइय इत्यादि कार्मणकाययोगवैक्रियिकतन्मिश्र काययोगद्वयौदारिकमिश्रकाययोगैरूना हीना अन्ये एकादशयोगाः । ते के ? अष्टौ मनोवचनयोगा औदारिककाययोग आहारकद्वयमित्येकादशयोगाः । परिहारदुगे णवयं परिहारविशुद्विसूक्ष्मसांपरायसंयमद्वये नवयोगा भवन्ति । ते के ? अष्टौ मनोवचनयोगा एक औदारिककाययोग इति नव । देसजमे चेव च पुनः देशसंयमे एते पूर्वोक्ता मनवचनानामष्टौ एक औदारिकयोग एवं नवयोगा भवन्ति । जहखादे - इति, उत्तर गाथायां सम्बन्धोऽस्ति ॥ २७ ॥
(२७) अन्वयार्थ - (पढमजमयुगले ) प्रथम संयम युगल अर्थात् सामायिक संयम और छेदोपस्थापना संयम में (कम्मइयदुवेगुव्विय मिस्सेरालूण) कार्मण काययोग, वैक्रियिक काययोग, वैक्रियिक मिश्रकाययोग, और औदारिक मिश्र काययोग से रहित ( इगदसi) ग्यारह योग होते हैं। (परिहारदुगे) परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसांपराय संयम में (णवयं) नवयोग होते हैं । (देसजमे चेव) देश संयम में भी (चेव) नौ योग होते
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