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________________ चरियाचरिए इक्कं पंचमयं असंजमे चउरो।। १७॥ सूक्ष्मे सूक्ष्म अन्तिमचत्वारि भवन्ति यथाख्याते। चरिताचरिते एकं पंचमकं असंयमे चत्वारि।। सुहमे इति, सूक्ष्मसाम्पराये चतुर्थे संयमे, सुहमं- इति, सूक्ष्मसाम्परायानाम दशमं एकं गुणस्थानं भवति। अंतिमचत्तारि जहखादे- इति, यथाख्याते पंचमसंयमे अन्तिमचत्वारि गुणस्थानानि भवन्ति। तानि कानि किन्नामानि चेत् ? उपशान्तकषायक्षीणकषायसयोगायोगकेवलिनामानि ज्ञेयानि। चरियाचरिए इक्कं पंचमयं- चरिताचरिते संयतासंयते षष्ठे संयमे, इक्कं पंचमयं- इति, पंचमं देशविरताख्यं भवति। असंजमे चउरो- असंयते सप्तमे मिथ्यात्वादिचतुर्थगुणस्थानानि चत्वारि भवन्ति। इति संयमामार्गणा पूर्णा।। १७।। अन्वयार्थ- (सुहमे) सूक्ष्म साम्पराय संयम में (सुहम) सूक्ष्म साम्पराय नामक दसवां गुणस्थान (जहखादे) यथाख्यात संयम में (अंतिम चत्तारि) अंतिम चार गुणस्थान होते हैं। (चरियाचरिए) संयतासंयत गुणस्थान में (इक्कं) एक (पंचमयं) पांचवाँ गुणस्थान (असंजमे) असंयत में (चउरो) चार गुणस्थान होते हैं। भावार्थ- सूक्ष्म साम्पराय नामक चतुर्थ संयम में एक सूक्ष्म साम्पराय नामक दशमा गुणस्थान होता है। पाँचवें यथाख्यात संयम में अन्तिम चार गुणस्थान होते हैं अर्थात् उपशान्त कषाय, क्षीण कषाय, सयोग केवली और अयोग केवली इस प्रकार चार गुणस्थान जानना चाहिए। संयतासंयत षष्टम संयम में एक देशविरत नाम का गुणस्थान होता है। सप्तम असंयत में मिथ्यात्व को आदि लेकर अविरत सम्यग्दृष्टि तक चार गुणस्थान होते हैं। इस प्रकार संयम मार्गणा पूर्ण हुई। बारस चक्खुदुगे णव अवहीए दुण्णि केवलालोए। किण्हादितिए चउरो तेजापउमासु सत्तगुणा।। १८॥ द्वादश चक्षुद्विके नव अवधौ द्वे केवलालोके। कृष्णादित्रिके चत्वारि तेजःपद्ययोः सप्तगुणाः।। बारस चक्खुदुगे- इति, चक्षुईये चक्षुर्दर्शनेअचक्षुर्दर्शने च मिथ्यात्वादीनि क्षीणकषायपर्यन्तानि द्वादश गुणस्थानानि स्युः। णव अवहीए- अवधिदर्शने अविरतप्रभृतिक्षीणकषायावसानानि नवगुणस्थानानि भवन्ति। दुण्णि केवलालोए केवलालोके केवलदर्शने, दुण्णिसयोगायोगकेवलिगुणस्थानद्वयं स्यात्। इति दर्शनमार्गणा। किण्हादितिए चउरो कृष्णादित्रिके चउरो मिथ्यात्वसासादन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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