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________________ (११) समास जानना चाहिए। अनाहारक अवस्था में ये आठ जीव समास कैसे होते हैं- इस शंका का समाधान करते हुए कहते हैं - कुछ विग्रह गति की अपेक्षा और कभी कुछ समुद्धात की अपेक्षा इस विषय में गाथा निम्न प्रकार है । अन्वयार्थ - विग्रह गति को प्राप्त जीव, समुद्धात को प्राप्त सयोग केवली, अयोग केवल और सिद्ध ये सभी जीव अनाहारक हैं शेष सभी जीव आहारक हैं। इस प्रकार जिनेन्द्र देव के द्वारा मार्गणाओं में जीव समास कहे गये । इस प्रकार चौदह मार्गणाओं में संक्षेप से चौदह जीव समास कहे । 5 अब चौदह मार्गणाओं में चौदह गुणस्थानों का कथन करने के लिए ग्रन्थकर्त्ता निम्न गाथा कहते हैं । अथ चतुर्दशमार्गणासु चतुर्दशगुणस्थानान्यवतारयन्नाह ग्रन्थकर्त्ता ( मार्गणासु गुणस्थाननिरूपणार्थ गाथामाह) - णारयतिरियणरामरगईसु चउपंचचउदसचयारि । इगदुतिचउरक्खेसु य मिच्छं विदियं च उववादे ।। १२ ।। नारकतिर्यङ्नरामरगतिषु चतुः पंचचतुर्दशचत्वारि । एकद्वित्रिचतुरक्षेषु च मिथ्यात्वं द्वितीयं चोपपादे ।। गाथा यथासंख्यं व्याख्येया । नारकतिर्यङ्नरामरगतिषु इयं चतुः पंचचतुर्दशचत्वारि गुणस्थानानि यथासंख्यं भवन्ति । इति गतिमार्गणा समाप्ता । इगिदुतिचउरक्खेसु य मिच्छं विदियं च उववादे एकद्वित्रिचतुरक्षेसु च एकेन्द्रियेषु द्विन्द्रियेषु त्रीन्द्रियेषु चतुरिन्द्रियेषु चैकं मिथ्यात्वं । च पुनः एतेष्वेव द्वितीयं सासादनगुणस्थानं, उववादे - उत्पत्तिकाले अपर्याप्तसमये स्यात् । एकेन्द्रियादिषु चतुर्षु मिथ्यात्वसासादनगुणस्थानद्वयं भवतीत्यर्थः ॥ १२ ॥ अन्वयार्थ - (णारय तिरियणरामरगईसु) नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में क्रमशः (चउ पंचचउदस चयारि) चार, पाँच, चौदह और चार गुणस्थान होते हैं। ( इगि दुतिचउरक्खेसु य) एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय में एक मिथ्यात्व गुणस्थान (च) और (विदियं) सासादन गुणस्थान ( उववादे) उत्पत्ति काल, अपर्याप्त समय में होता है । भावार्थ- नरकगति में मिथ्यात्वादि चार गुण स्थान, तिर्यंच गति में मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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