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(१०) संज्ञी पर्याप्तक सभी सम्मिलित आठ जीव समास होते हैं। मिथ्यात्व में एकेन्द्रियादिक चौदह जीव समास होते हैं।
सण्णिअसण्णिसु दोण्णि य आहारअणाहारएसु विण्णेया। जीवसमासा चउदस अटेव जिणेहिं णिद्दिवा।। ११॥
संझ्यसंज्ञिनोः द्वौ च आहारानहारकयोः विज्ञेयाः।
जीवसमासाश्चतुर्दश अष्टावेव जिनैः निर्दिष्टाः॥ सण्णिअसण्णिसु दोण्णि य- संज्ञिजीवे पंचेन्द्रियसंज्ञिपर्याप्तापर्याप्तौ द्वौ जीवसमासौ भवतः। असंज्ञिजीवे असंज्ञिपर्याप्तापर्याप्तौ जीवसमासौ स्याताम्। आहारानाहरकेषु ज्ञेया जीवसमासाश्चतुर्दश अष्टावेव। को भावः? आहारकमार्गणायां चतुर्दशजीवसमासा विज्ञेयाः।अनाहरकमार्गणायामष्टावेव जीवसमासा बोद्धव्याः। ते के इति चेदुच्यते- एकेन्द्रियसूक्ष्मबादर-द्वित्रिचतुरिन्द्रिपंचेन्द्रियसंग्यसंज्ञिन एते सप्त अपर्याप्ताः, एकः संज्ञिपंचेन्द्रियपर्याप्तक इत्यष्टौ जीवसमासाः। अनाहारे एतेअष्टौ कथं संभवतीत्याशंकायामाह- क्वचिद्विग्रहगत्यपेक्षया क्वचित्केवलिसमुद्धातापेक्षया। तथा चोक्तंविग्गहगइमावण्णा
समुग्धाइयकेवलिअजोगिजिणा। सिद्धा य अणाहारा सेसा आहरिया जीवा॥ १॥
जिणेहिं णिद्दिवा- जिनैः कथिता मार्गणासु यथासंभवं जीवसमासा जिनैणिता इत्युक्तिलेशः।। ११॥
इति चतुर्दशमार्गणासु जीवसमासाश्चतुर्दश संक्षेपेण कथिताः।
अन्वयार्थ- (सण्णि असण्णिसु) संज्ञी जीवों में और असंज्ञी जीवों में (दोण्णि) दो जीव समास (आहार अणाहारएसु) आहारक और अनाहारक इन दोनों में (चउदस अद्वेव) चौदह, आठ (जीव समासा) जीव समास जानना चाहिए। इस प्रकार मार्गणाओं में जीव समास (जिणेहिं) जिनेन्द्र देव के द्वारा (णिदिट्ठा) कहे गये हैं।
भावार्थ- संज्ञी जीवों में पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक इस प्रकार दो जीव समास होते हैं। असंज्ञी जीवों में असंज्ञी पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीव समास होते हैं। आहारक मार्गणा में चौदह जीव समास जानना चाहिए। और अनाहारक मार्गणा में आठ जीव समास होते हैं वे इस प्रकार हैं- एकेन्द्रिय सूक्ष्म, बादर, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय संज्ञी और असंज्ञी इन सभी के अपर्याप्तक इस प्रकार सात, और एक संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक इस प्रकार आठ जीव
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