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आचार्य श्रुतमुनि
श्री डॉ. ज्योतिप्रसादजी ने 17 श्रुतमुनियोंका निर्देश किया है । पर हमारे अभीष्ट आचार्य श्रुतमुनि परमागमसार , भाव त्रिभङ्गी, आस्रव त्रिभङ्गी आदि ग्रन्थों के रचयिता हैं । ये श्रुतमुनि मूलसंघ देशीगण पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्द आम्नाय के आचार्य हैं । इनके अणुव्रतगुरु बालेन्दु या बालचन्द्र थे । महाव्रतगुरु अभयचन्द्र सिद्धान्तदेव एवं शास्त्रगुरु अभयसूरि और प्रभाचन्द्र थे। आस्रव त्रिभङ्गी के अन्तमें अपने गुरु बालचन्द्र का जयघोष निम्न प्रकार किया है
इदि मग्गणासु जोगो पच्चयभेदो मया समासेण । कहिदो सुदमुणिणा जो भावइ सो जाइ अप्पसुहं ॥ पयकमलजुयलविणमियविणेय जणकयसुपूयमाहप्पो । णिज्जियमयणपहावो सो बालिंदो चिरं जयऊ ॥
आरा जैन सिद्धान्त भवन में भाव त्रिभङ्गी की एक ताड़पत्रीय प्राचीन प्रति है, जिसमें मुद्रित प्रतिकी अपेक्षा निम्नलिखित सात गाथाएँ अधिक मिलती हैं। इन गाथाओं पर से ग्रन्थ रचियता के समय के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त होती है -
" अणुवदगुरुबालेंदु महव्वदे अभयचंदसिद्धंति । सत्थेऽभयसूरि-पहाचंदा खलु सुयमुणिस्स गुरू ॥ सिरिमूलसंघदेसिय पुत्थयगच्छ कोंडकुंदमुणिणाहं (?)। परमण्ण इंगलेसबलम्मिजादमुणिपहद (हाण ) स्स ॥ सिद्धन्ताहयचंदस्स य सिस्सो बालचंदमुणिपवरो । सो भवियकुवलयाणं आणंदकरो सया जयऊ ॥ सद्दागम-परमागम- तक्कागम- निरवसेसवेदी हु ।
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