SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हृदयोद्गार आचार्य श्री श्रुतमुनि द्वारा विरचित "परमागम-सार" प्रावृ त भाषा का अद्वितीय ग्रंथ है । इसमें जैन सिद्धांतो का अच्छा वर्णन हुआ है। इसका हिन्दी अनुवाद प्रथम बार श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल के ब्रह्मचारी विनोद कुमारजी एवं ब्र. अनिल कुमार जी ने किया है । हिन्दी अनुवाद हो जाने से सामान्यजन भी इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ से परिचय प्राप्त कर सकेगें । ब्रह्मचारी युगल की कर्त्तव्यशीलता प्रशंसनीय है । इन्होनें परमागम - सार के समान ही सिद्धांतसार, ध्यानोपदेश कोष, भावत्रिभङ्गी का भाषानुवाद भी किया है । आप दोनों के द्वारा धवला पारिभाषिक कोश, प्रकृति परिचय जैसी अनुपम कृतियों का भी संकलन किया गया है । ब्रह्मचारी युगल अभीक्ष्ण- ज्ञानोपयोगी हैं । आगामी काल में इसी प्रकार जिनवाणी की सेवा करते रहें ऐसी मनोभावना है । वीर निर्वाण महोत्सव सन् 2000 Jain Education International विनीत डॉ. प . पन्नालाल जैन साहित्याचार्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002708
Book TitleParamagamsara
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherVarni Digambar Jain Gurukul Jabalpur
Publication Year2000
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, H000, H999, P000, & P999
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy