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बहिरप्पादेहादिसु जादा दम्भंतिरंतरप्पा हु। मवयणसरीरप्पसु विम्भंतो णिम्मलो हु परमप्पा ।।87।।
अन्वय - बहिरप्पादेहादिसु दम्भंति जादा अंतरप्पा हु मणवयणसरीरप्पसु विम्भंतो परमप्पा हु णिम्मलो।
__अर्थ- बहिरात्मा को देहादि में अहंकार हो जाता है , अंतरात्मा निश्चय से मन, वचन, और शरीर में भ्रम रहित रहता है और परमात्मा - द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म से रहित हैं।
बंधजुदो बहिरप्पा णिरयादिगदीसु दुक्खमणुहवदि । अंतविरहियं बहुसो जणणं मरणं च लभ्रूण 188||
अन्वय - बहिरप्पा बंधजुदो अंतविरहियं बहुसो जणणं मरणं च लद्रूण णिरयादिगदीसु दुक्खमणुहवदि ।
अर्थ- बहिरात्मा जीव बंधसहित होकर अंतरहित बहुत से जन्ममरण प्राप्त कर नरकादि गतियों में दुःखों का अनुभव करता है।
जो अंतरप्पजीवो मणुजिंदसुरिंदलोयदिव्वसुहं । अणुभूय पुण मुणिंदो होऊण य हणइ जम्माणि ।।89।। सो परमप्पो होदि हु अणंतणाणाइगुणगणेहि जुदो। भुजेदि अणंतसुहं अदिदियं अप्पसंभूदं 190II
अन्वय - जो अंतरप्पजीवो मणुजिंदसुरिंदलोय दिव्वसुर्ह अणुभूय पुण मुणिंदो होश य जम्माणि हणइ सो हु अणंतणाणागुणगणेहि जुदो परमप्पो होदि अप्पसंभूदं अदिदियं अणंतसुहं भुंजेदि।
___ अर्थ - जो अंतरात्मा जीव है , वह चक्रवर्ती, इन्द्र आदि के तथा लोक के दिव्य सुखों का अनुभव करता हुआ पुनः मुनीन्द्र होकर जन्मों का नाश करता है और वह निश्चय से अनंत ज्ञानादि गुणों के समूह से युक्त होता हुआ परमात्मा होता है तथा आत्मा से उत्पन्न अतीन्द्रिय और अनंतसुख को भोगता है ।
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