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अन्वय - एगो अविभागी सुहुमपरमाणू अव्वावगो होई अव्वत्तस्सत्तीदो केवलणाणव्व भव्वस्य ।।
__ अर्थ - एक अविभागी सूक्ष्म परमाणु अव्यापक होता है। अव्यक्त शक्ति रूप भव्य जीव के केवलज्ञान के समान । विशेष - सूक्ष्म परमाणु अव्यापक है लेकिन यदि वह अपनी योग्यता से महास्कंध रूप परिणमन करें तो सम्पूर्ण लोकमें व्याप्त हो सकता है। परमाणु यह शक्ति अव्यक्त है। ठीक इसी प्रकार भव्य जीव में केवलज्ञान को प्राप्त करने की योग्यता हैं लेकिन वर्तमान में अव्यक्त है।
सव्वाओ पुढवीओ सव्वे खलु पव्वदादयो खंदा। अव्वावगा हवंति हुधम्मतियं वावगा चेव ।।7 1||
अन्वय - खलु सव्वाओ पुढवीओ सव्वे पव्वदादयो खंदा अव्वावगा हवंति हु धम्मतियं वावगा चेव ।
अर्थ - निश्चय से सभी पृथ्वीकायिक जीव और सभी पर्वतादि स्कध अव्यापक होते हैं । धर्म, अधर्म और आकाश व्यापक हैं ।
एगेगम्मि लोयपदेसे एगेग होइ कालाणू । तम्हा णाणा कालाणूणं पडिवावगो णेयो 172।।
अन्वय - एगेगम्मि लोयपदेसे एगेग कालाणू होइ तम्हा णाणा कालाणूणं पडिवावगो यो।
अर्थ - एक-एक लोक के प्रदेश पर, एक-एक कालाणु होता है। इसलिये अनेक-कालाणुओं की अपेक्षा (काल द्रव्य) व्यापक जानना चाहिये।
अव्वावगो हु एगो कालाणू जो तिलोयसंपुण्णो। सो वावगो हि अव्वावगो दुण तिलोयसंपुण्णो ।।73||
अन्वय - एगो कालाणू हु अव्वावगो जो तिलोयसंपुण्णो सो वावगो हि ण तिलोयसंपुण्णो अव्वावगो दु।
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