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________________ - - - - - - - - - - - कल्पवासी देवायु विशेष के बन्धयोग्य परिणाम सबलचरित्ता कूरा, उम्मग्गट्ठा णिदाणकदभावा । मंद कसायाणुरदा, बंधंते अप्पइद्धि असुराउं दसपुव्वधरासोहम्मप्पहुदि सव्वट्ठसिद्धिपरियंतं चोद्दसपुव्वधरा तह, लंतवकप्पादि वच्चंते सोहम्मादि अच्चुदपरियंतंजंति देसवदजुत्ता चउविहदावपणट्ठा, अकसायापंचगुरुभत्ता सम्मत्तणाणअज्जवलज्जासीलादिएहि परिपुण्णा । जायते इत्यथीओ, जा अच्चुदकप्पपरियंतं जिणलिंगघारिणोजे, उक्किट्ठतवस्समेण संपुण्णा तेजायंति अभव्वा, उवरिमगेवेज्जपरियंतं परदोअच्चणवदतवदंसणणाणचरण संपण्णा णिग्गंथाजायंते, भव्वा सव्वट्ठसिद्धि परियंतं चरयापरिवज्जघरामंदकसाया पियंवदा केई कमसो भावणपहुदि, जम्मते बम्हकप्पंतं जे पंचेंदियतिरिया, सण्णी हु अकामणिज्जरेण जुदा । मंदकसाया केई, जंति सहस्सारपरियंतं तणदंडणादिसहिया जीवाजे अमंदकोहजुदा कमसो भावपहुदो, केई जम्मति अच्चुर्द जाव आईसाणं कप्पं उप्पत्ती होदि देवदेवीणं तप्परदो उन्मूदी, देवाणं केवलाणं पि ईसाणलंतवच्चुदकप्पंतंजाव होति कंदप्पा । किब्विसिया अभियोगा, णियकप्पजहण्णठिदिसहिया॥ दूषित चरित्रवाले, क्रूर, उन्मार्ग में स्थित, निदान भाव से सहित, कषायों में अनुरक्त जीव अल्पर्द्धि व देवों की आयु बाँधते हैं। दस पूर्व के धारी जीव सौधर्मादि सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त तथा चौदहपूर्वधारी लांतव कल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त जाते हैं। चार प्रकार के दान में प्रवृत्त, कषायों से रहित व पंचगुरुओं की भक्ति से युक्त ऐसे देशव्रत संयुक्त जीव सौधर्म स्वर्ग को आदि लेकर अच्युतस्वर्ग पर्यन्त जाते हैं। सम्यक्त्व, ज्ञान, आर्जव, लज्जा एवं शीलादि से परिपूर्ण स्त्रियाँ अच्युत कल्प पर्यन्त जाती हैं । जो जघन्य जिनलिंग को धारण करने वाले और उत्कृष्ट तप के श्रम से परिपूर्ण वे - - - - - (48) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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