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________________ ईसाणलंतवच्चुदकप्पंतं जाव होति कंदप्पा किव्विसिया अभियोगाणियकप्पजहण्णठिदिसहिया॥ मरण के विराधित करने पर अर्थात् समाधि मरण के बिना, कितने ही जीव दुर्गतियों में कन्दर्प, किल्विष, आभियोग्य और सम्मोह इत्यादि देव उत्पन्न होते हैं। जो प्राणी सत्य वचन से रहित हैं, नित्य ही बहुजन में हास्य करते हैं, और जिनका हृदय कामासक्त रहता है, वे कन्दर्प देवों में उत्पन्न होते हैं। जो भूतिकर्म, मन्त्राभियोग और कौतूहलादि आदि से संयुक्त हैं तथा लोगों के गुणगान (खुशामद) में प्रवृत्त रहते हैं, वे वाहन देवों में उत्पन्न होते हैं . जो लोग तीर्थंकर वसंघ की महिमा एवं आगमग्रन्थादि के विषय में प्रतिकूल हैं, दर्विनयी, और मायाचारी हैं, वे किल्विष देवों में उत्पन्न होते हैं। उत्पथ अर्थात् कुमार्ग का उपदेश करने वाले, जिनेन्द्रोपदिष्ट मार्ग में विरोधी और मोह से संमुग्ध जीव सम्मोह जाति के देवों में उत्पन्न होते हैं। दुषित चारित्रवाले, क्रूर, उन्मार्ग में स्थित, निदान भाव से सहित और मन्द कषायों में अनुरक्त जीव अल्पर्द्धिक देवों की आयुको बाँधते हैं। कन्दर्प, किल्विषिक और आभियोग्य देव अपने-अपने कल्पकी जघन्य स्थिति सहित क्रमशः ईशान, लान्तव और अच्युत कल्प पर्यन्त होते हैं। (ति.प. 8/597-589) ज्योतिषदेवायुके बंधयोग्य परिणाम आयुबंधणभावं,दसणगहणस्सकारणं विविहं। गुणठाणादि पवण्णण, भावणलोएव्व वत्तव्वं ॥ आयु के बन्धक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहण के विविध कारण और गुणस्थानादिक का वर्णन, भावनलोक के समान कहना चाहिए। (ति.प. 7/622) कल्पवासी देवायु सामान्य के बन्धयोग्य परिणाम कल्याणमित्रसम्बन्ध आयतनोपसेवासद्धर्मश्रवणगौरवदर्शनाऽनवद्यप्रोषधोपवास-तपोभावना-बहुश्रुतागमपरत्वकषायनिग्रह-पात्रदानपीतपद्मलेश्यापरिणाम-धर्मध्यानमरणादिलक्षणः सौधर्माद्यायुषः आसवः। कल्याणमित्र संसर्ग, आयतन सेवा, सद्धर्मश्रवण, स्वगौरवदर्शन, प्रोषधोपवास, तपकी भावना, बहुश्रुतत्व आगमपरताकषायनिग्रह, पात्रदान, पीत पद्मलेश्या के परिणाम, मरण काल में धर्मध्यान रूप परिणति आदि सौधर्म आदि आयु के आस्रव हैं। (रा.वा. 6/20) (47) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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