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बतलाने के लिए इस सूत्र को अलग बनाया है। (स.सि. 6/18) अकामनिर्जराबालतपो मन्दकषायता । सुधर्मश्रवणं दानं तथायतनसेवनम् ॥ सरागसंयमश्चैवसम्यक्त्वं देशसंयमः। इति देवायुषो ह्येते भवन्त्यासवहेतवः ॥ बालतप व अकामनिर्जरा के होने से, कषाय मन्द रखने से, श्रेष्ठ धर्म को सुनने से, दान देने से, आयतन सेवी बनने से, सराग साधुओं का संयम धारण करने से, देशसंयम धारण करने से, सम्यग्दृष्टि होने से, देवायुका आस्रव होता है।
(त.सा. 4/42) अणुव्वदमहव्वदेहिं यबालतवाकामणिज्जराएय। देवाउगं णिबंधइ सम्माइट्ठीय जो जीवो ॥ जो जीव सम्यग्दृष्टि है, सो केवल सम्यक्त्व करि साक्षात् अणुव्रत, महाव्रत निकरिदेवायुको बाँधै है बहुरि जो मिथ्यादृष्टि जीव है सो उपचाररूप अणुव्रत महाव्रत निकरिवा अज्ञानरूप बालतपश्चरण करि वा बिना इच्छा बन्धादिकतै
भई ऐसी अका निर्जराकरि देवायुकौं बाँधे है। (गो.क. 807) भवनत्रिकायु सामान्य के बन्धयोग्य परिणाम
अव्यक्तसामायिक-विराधितसम्यग्दर्शनताभवनाद्यायुषः महर्द्धिकमानुषस्यवापञ्चाणुव्रतधारिणोऽविराधितसम्यग्दर्शनाःतिर्यङ्मनुष्याःसौधमर्मादिषु अच्युतावसानेसूत्पद्यन्ते, विनिपतितसम्यक्त्वाभवनादिषु। अनधिगतजीवाजीवाबालतपसःअनुपलब्धतत्त्वस्वभावा अज्ञानकृतसंयमाः संक्लेषाभावविशेषात् केचिद्भवनव्यन्तरादिषु सहस्त्रारपर्यन्तेषु मनुष्यतिर्यक्ष्वपिच। अकामनिर्जरा-क्षुत्तृष्णानिरोध-ब्रह्मचर्य-भूशय्या-मलधारण-परितापादिभिः परिखेदितमूर्तयःचारकनिरोधबन्धनबद्धा दीर्घकालरोगिणः असंक्लिष्टाः तरुगिरिशिखरपातिनः अनशनज्वलनजलप्रवेशनविषभक्षण धर्मबुद्धयःव्यन्तरमानुषतिर्यक्षु । निःशीलवताःसानुकम्पहृदयाः जलराजितुल्यरोषाभोगभूमिसमुत्पन्नाश्च व्यन्तरादिषु जन्म प्रतिपद्यन्ते इति। अव्यक्त सामायिक, और सम्यग्यदर्शन की विराधना आदि भवनवासी आदि की आयु के अथवा महर्द्धिक मनुष्य की आयु के आसव के कारण हैं। पंच अणुव्रतों के धारक सम्यग्दृष्टि तिर्यंच यामनुष्यसौधर्म आदि अच्युतपर्यन्त
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