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कोई पात्र विशेषों को दान देकर और कोई दानों की अनुमोदना करके तिर्यंच भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। जो पापी जिनलिंग को (मुनिव्रत) को ग्रहण करके संयम एवं सम्यक्त्व भाव को छोड़ देते हैं और पश्चात् मायाचार में प्रवृत्त होकर चारित्र को नष्ट कर देते हैं, तथा जो कोई मूर्ख मनुष्य कुलिंगियों को नाना प्रकार के दान देते हैं या उनके भेष को धारण करते हैं वे भोग-भूमि में तिर्यंच होते हैं।
(ति.प. 4/376-78) कर्मभूमिज मनुष्यायु के बन्धयोग्य परिणाम
अल्पारम्मपरिग्रहत्वं मानुषस्य।स्वभावमार्दवं च। अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह का भाव मनुष्यायुका आसव है। स्वभाव की मृदुता भी मनुष्यायुपने का आसव है। (त.सू. 6/17,18) नारकायुरासवो व्याख्यातः । तद्विपरीतो मानुषस्यायुष इति संक्षेपः। तद्व्यासः - विनीतस्वभावः प्रकृतिभद्रता प्रगुणव्यवहारता तनुकषायत्वं मरणकालासंक्लेशतादिः। स्वभावेन मार्दवम् । उपदेशानपेक्षमित्यर्थः । एतदपिमानुषस्यायुष आसवः। नरकायुका आस्रव पहले कह आये हैं। उससे विपरीत भाव मनुष्यायु का आसव है। संक्षेप में यह सूत्र का अभिप्राय है। उसका विस्तार से खुलासा इस प्रकार है। स्वभाव का विनम्र होना, भद्र प्रकृति का होना, सरल व्यवहार करना, अल्प कषाय का होना तथा मरण के समय संक्लेश रूप परिणतिका नहीं होना आदि मनुष्यायु के आस्रव हैं। स्वभाव से मार्दव स्वभाव मार्दव है। आशय यह है कि बिना किसी के समझाये बुझाये मृद्ता अपने जीवन में उतरी हुई हो इसमें किसी के उपदेश की आवश्यकता न पड़े। यह भी मनुष्यायु का आस्रव है।
(स.सि. 6/17-18) मिथ्यादर्शनालिङ्गितमति-विनीतस्वभावता प्रकृतिभद्रतामार्दवार्जवसमाचारसुखप्रज्ञापनीयता बालुकाराजिसदृशरोषप्रगुणव्यवहार प्रायताऽल्पारम्भपरिग्रह-संतोषाभिरतिप्राण्युपघातविरमणप्रदोष विकर्मनिवृत्ति- स्वागताभिभाषणाऽमौखर्यप्रकृतिमधुरतालोकयात्रानुग्रह औदासीन्याऽनुसूयाऽल्पसंक्लेशता - गुरुदेवता-ऽतिथिपूजा संविभागशीलता- कपोतपीतलेश्योपश्लेषधर्मध्यानमरणकालतादिलक्षणः। भद्रमिथ्यात्व, विनीत स्वभाव, प्रकृतिभद्रता, मार्दव आर्जव परिणाम, सुख समाचार कहने की रुचि, रेतकी रेखा के समान क्रोधादि, सरल व्यवहार,
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