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अल्पपरिग्रह, संतोष सुख, हिंसाविरक्ति, दुष्ट कार्यों से निवृत्ति, स्वागततत्परता, कम बोलना, प्रकृति मधुरता, लोकयात्रानुग्रह, औदासीन्यवृत्ति, ईर्षारहित परिणाम, अल्पसंक्लेश, देव-देवता तथा अतिथि पूजा में रुचि, दानशीलता, कापोत पीत लेश्या रूप परिणाम, मरण काल में धर्म ध्यान परिणति आदि मनुष्यायु के आस्रव के कारण हैं।
(रा.वा. 6/17) अव्यक्तसामायिक-विराधितसम्यग्दर्शनता भवनाद्यायुषःमहर्द्धिकमानुषस्यवा। अव्यक्त सामायिक और सम्यर्दशन की विराधना आदि भवनवासी आदि देवों की आयु के और महर्द्धिक मनुष्यों की आयु के आसव के कारण हैं ।
(रा.वा. 6/20) तत्र ये हिंसादयः परिणामा मध्यमास्ते मनुज गतिनिर्वर्तकाः बालिकाराज्या, दारुणा,गोमूत्रिकया, कर्दमरागेण चसमानाःयथासंख्येन क्रोधमानमायालोमाः परिणामाः। जीवघातं कृत्वा हा दुष्टं कृतं, यथा दुःखं मरणं वास्माकं अप्रियं तथा सर्वजीवानां। अहिंसा शोभनावयं तु असम
हिंसादिकं परिहर्तुमिति च परिणामः । मृषापरदोषसूचकं परगुणनामसहनं वचनं वासज्जानाचारः। साधुनामयोग्यवचने दुर्व्यापारे चप्रवृत्तानांकानामसाधुतास्माकमितिपरिणामः। तथाशस्त्रप्रहारदप्यर्थः परद्रव्यापहरणं, द्रव्यविनाशो हि सकलकुटुम्बविनाशो, नेतरत् तस्माद्बष्टकृत् परधनहर-णमितिपरिणामः। परदारादिलचनमस्माभिः कृतें तदतीवाशोभनं । यथास्मद्दाराणां परैर्ग्रहणे दुःखमात्मसाक्षिक तद्वत्तेषामिति परिणामः यथा गङ्गा-दिमहानदीनां अनवरतप्रवेशेऽपिन तृप्तिः सागरस्यैवं द्रविणेनापि जीवस्य संतोषो नास्तीति परिणामः । एवमादिपरिणामानां दुर्लभता अनुभवसि-दैव। इन (तीव्र, मध्यम व मन्द) परिणामों में जो मध्यम हिंसादि परिणाम हैं वे मनुष्यपना के उत्पादक हैं। (तहाँ उनका विस्तार निम्न प्रकार जानना )। 1. चारों कषायों की अपेक्षा - बालुका में खिंची हुई रेखा के समान क्रोध परिणाम, लकड़ी के समान मान परिणाम, गोमूत्राकार के समान माया परिणाम, और कीचड़ के रंग के समान लोभ परिणाम ऐसे परिणामों से मनुष्यपना की प्राप्ति होती है।
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