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________________ तं च उव्विहं कोह- माण - माया लोहभेएण । अप्रत्याख्यान संयमासंयम का नाम है उस अप्रत्याख्यान को जो आवरण करता है उसे अप्रत्याख्यानावरणीय कहते हैं । वह क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से चार प्रकार का है। (ध. 6/44) यदुदयाद्देशविरति संयमासंयमाख्यामल्यामपि कर्तुं न शक्नोति ते देशप्रत्याख्यानमावृण्वन्तोऽप्रत्याख्यानावरणाः क्रोध मान माया लोभाः । जिनके उदय से जिसका दूसरा नाम संयमासंयम है ऐसी देशविरति को यह जीव स्वल्प भी करने में समर्थ नहीं होता है वे देशप्रत्याख्यानं को आवृत करने वाले अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं । ( स. सि. 8 / 9 ) - प्रत्याख्यान (क्रोध, मान, माया लोभ) पच्चक्खाणं संजमो महव्वपाइं ति एयट्ठो । पच्चक्खाणमावरेति त्ति पच्चखाणावरणीया कोह- माण- माया लोहा । प्रत्याख्यान, संयम और महाव्रत, ये तीनों एक अर्थ वाले नाम हैं । प्रत्याख्यान को जो आवरण करते हैं वे प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभकषाय कहलाते हैं । (ध 6 / 44 ) यदुदयाद्विरतिं कृत्स्नां संयमाख्यां न शक्नोति कर्तुं ते कृत्स्नं प्रत्याख्यानमावृण्वन्तः प्रत्याख्यानावरणाः क्रोधमानमायालोभाः। जिनके उदय से संयम नामवाली परिपूर्ण विरति को यह जीव करने में समर्थ होता है वे सकल प्रत्याख्यान को आवृत करने वाले प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ हैं । ( स. सि. 8 / 9 ) संज्वलन (क्रोध, मान, माया लोभ) सम्यक् ज्वलतीति संज्वलनम् । चारित्रेण सहज्वलनम् । चारित्रमविणासेंता उदयं कुणंति । संजमम्हि मलमुप्पाइय जहाक्खादचारितुप्पत्ति पडिबंधयाणं चारित्तावरणत्ताविरोहा । ते वि चत्तारि कोह- माण- मायालोह-भेदेण । जो सम्यक् प्रकार जलता है, उसे संज्वलन कहते हैं । चारित्र के साथ जलना ही इसका सम्यक्पना है . अर्थात् चारित्र को नहीं विनाश करते हुए कषाय उदय को प्राप्त होती है। संज्वलन कषाय संयम में मलको उत्पन्न करके यथाख्यात चारित्र की उत्पत्ति के प्रतिबंधक होती है क्रोध, मान, Jain Education International (23) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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