SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माया और लोभ के भेद से इसके चार प्रकार हैं। (ध. 6/44) संयमेन सहावस्थानादेकीभूय ज्वलन्तिसंयमोवा ज्वलत्येषु सत्स्वपीति संज्वलनाःक्रोधमानमायालोमाः। संयम के साथ अवस्थान होने में एक होकर जो ज्वलित होते हैं अर्थात् चमकते हैं या जिनके सद्भाव में संयम चमकता रहता है वे संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ हैं । (स.सि. 8/9) नोकषाय वेदनीय के भेद जंतंणोकसायवेदणीयं कम्मं तंणवविहं, इत्थिवेदं पुरिसवेदं णवंसयवेदं हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुर्गंछाचेदि। जो नोकषाय वेदनीय कर्म है वह नौ प्रकार का है - स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा। (ध6 /45) स्त्रीवेद जेसिं कम्मक्खंघाणमुदएणपुरुसम्मि आकंखाउप्पज्जइतेसिमित्थिवेदो त्ति सण्णा। जिन कर्म स्कंधों के उदय से पुरुष में आकांक्षा उत्पन्न होती है उन कर्म स्कंधों की 'स्त्रीवेद' यह संज्ञा है। (ध. 6/47) यतःस्त्रियमात्मानं मन्यमानः पुरुषेवेदयतिरन्तुमिच्छति सः स्त्रीवेदः । जिसके कारण अपने को स्त्री मानता हुआ पुरुष में रमण करने की इच्छा करता है, वह स्त्रीवेद है। (क.प्र./15) . यदुदयात्स्त्रैणान्मावान्प्रतिपद्यते सस्त्रीवेदः। जिसके उदय से स्त्री सम्बन्धी भावों को प्राप्त होता है वह स्त्रीवेद है। (स.सि. 8/9) यस्योदयात् स्त्रैणान्मावान्मार्दवक्लैव्यमदनावेशनेत्रविभ्रमास्फालन सुख पुंस्कामनादीन्प्रतिपद्यतेसस्त्रीवेदः। जिसके उदय से स्त्री सम्बन्धी मार्दव, भयभीतता, कामावेश, नेत्र मटकाना, पुरुष को चाहना इत्यादि भाव प्रकट होते हैं वह स्त्री वेद कर्म है । (त.वृ. भा. 8/9) श्रोणिमार्दवभीतत्वमुग्धत्वक्लीबतास्तनाः। पुंस्कामेन समं सप्त लिङ्गानि स्त्रैणसूचने ॥ (24) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy