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लोहसंजलणंचेदि। जो कषाय वेदनीय कर्म है वह सोलह प्रकार का है अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान माया, लोभ प्रत्याख्यानावरणीय क्रोधमान, माया, लोभ, क्रोधसंज्वलनमान संज्वलन, माया संज्वलन और लोभ संज्वलन।
(ध. 13/360) अनन्तानुबंधी (क्रोधमानमाया लोभ)
अनन्तान् भवाननुबटुंशीलं येषां ते अनन्तानुबन्धिनः। अनंतानुबन्धिनश्चते क्रोधमान मायालोमाश्च अनंतानुबंधिक्रोधमान मायालोभाः। जेहि कोह माण माया लोहेहि अविणट्ठसरुवेहि सह जीवो अणंते भवे हिंडदितेसिंकोह-माण-माया-लोहाणं अणंताणुबंधी सण्णा। अनन्त भवों को बांधना ही जिनका स्वभाव है वे अनन्तानुबंधी कहलाते हैं। अनंतानुबंधीजो क्रोध, मान, माया लोभ होते हैं वे अनंतानुबंधी क्रोध,मान, माया, लोभ कहलाते हैं। जिन अविनष्ट स्वरूप वाले, अर्थात् अनादि परम्परागत क्रोध, मान,मायाऔर लोभ के साथजीव अनंत भव में परिभ्रमण करता है, उन क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों की अनन्तानुबंधी संज्ञा है।
(ध. 6/41) सम्मइंसण-चारित्ताणं विणासयाकोहमाणमायालोहा अणंत भवाणुबंधणसहावा अणंताणुबंधिणोणाम । अणतेसु भवेसु अणुबंधोजेसिंतेवा अणंताणुबंधिणो भण्णंति। जो क्रोध, मान, माया और लोभ सम्यग्दर्शन व सम्यक् चारित्र का विनाश करते हैं तथा जो अनन्त भव के अनुबंधन स्वभाव वाले होते हैं वे अनन्तानुबंधी कहलाते हैं। अथवा अनंत भवों में जिनका अनुबंध चला जाता है, वे अनंतानुबंधी कहलाते हैं।
(ध. 13/360) अनन्तसंसारकारणत्वान्मिथ्यादर्शनमनन्तम् । तदनुबन्धिनोऽनन्तानुबन्धिनः क्रोधमानमायालोमाः।। अनन्त संसार का कारण होने से मिथ्यादर्शन अनन्त कहलाता है तथा जो कषाय उसके अर्थात् अनन्त के अनुबन्धी हैं वे अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ है।
(स.सि. 8/9) अप्रत्याख्यान (क्रोध, मान, माया लोभ)
अप्रत्याख्यानं संयमासंयमः। तमावृणोतीति अप्रत्याख्यानावरणीयम्।
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