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क्रोधादि परिणाम आत्मा को कुगति में ले जाने के कारण कषते हैं ; आत्मा
के स्वरूप की हिंसा करते हैं, अतः ये कषाय हैं। (रा.वा. 6/4) कषाय वेदनीय जस्स कम्मस्य उदएण जीवो कसायं वेदयदि तं कर्म कषायवेयणीयं णाम। जिस कर्म के उदय से जीव कषाय कावेदन करता है वह कषायवेदनीय कर्म
(ध. 13/359) नोकषाय
ईषत्कषायाःनोकषायाः। ईषत् कषायों को नोकषाय कहा जाता है।
(ध. 13/359) कसाएहिंतोणोकसायाणकघंथोवत्तं। हिदीहिंतोअणुभागदोउदयदोय। प्रश्न -कषायों से नोकषायों के अल्पपना कैसे हैं ? उत्तर - स्थितियों की, अनुभाग की और उदय की अपेक्षा कषायों से नोकषायों के अल्पता पायी जाती है।
(ध.6/46) इनके ईषत् कसायपना कैसे सो कहे है जैसे श्वान जो कूरता सोस्वामी का सहायका अवलंवनतै बहुत बलवान होई प्राणीनि के मारने में वर्ते है अर स्वामी का सहायका अवलंबन नहीं होई पीछा फिरि आवै। तैसे क्रोधादि कषाय का अवलंबनतै हास्यादिकनिकी प्रवृत्ति होई अर क्रोधादिकषाय की प्रवृत्ति का अभावतै हास्यादिक नहीं प्रवर्ते तातै इनकू अकषाय कहे।
(अ.प्र.8/9) नोकषाय वेदनीय
जस्स कम्मस्स उदएण जीवोणोकसायं वेदयदितं णोकसाय वेदणीयं णाम। जिस कर्म के उदय से जीव नोकषाय का वेदन करता है, वह नोकषाय वेदनीय कर्म है।
.. (ध. 13/359) कषाय वेदनीय के भेद जंतं कसायवेदणीयं कम्मं तंसोलहविहं-अणताणुबंधिकोह-माण-माया -लोहं, अपच्चक्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोहं पच्चक्खाणावरणीय कोह-माण-माया-लोहं कोहसंजलणं माणसंजलणं माया संजलणं
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