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पाप गुणके ख्यापन कथन में जो कारण पड़ता है वह अयशस्कीर्ति नामकर्म
(त.वृ.भा.8/11) बहुरि पापरूप गुणनिकी विख्यातताजाके उदयतै होय सो अयशस्कीर्तिमान
(अ.प्र. 8/11) निर्माण नामकर्म
जस्स कम्मस्सुदएण अंग पच्चंगाणं ठाणं पमाणंचजादिवसेणणियमिज्जदितं णिमिण णाम। जिस कर्म के उदयसे अंग प्रत्यंग का स्थान और प्रमाण अपनी अपनी जाति के अनुसार नियमित किया जाता है, वह निर्माण नामकर्म है। (ध.13/366) नियतमानं निमानं। तं दुविहं प्रमाणणिमिणं संठाणणिमिणमिदि। जस्स कम्मस्स उदएणजीवाणं दो विणिमिणाणिहोंति, तस्स कम्मस्स णिमिणमिदिसण्णा। नियत मान को निर्माण कहते हैं। वह दो प्रकार का है - प्रमाणनिर्माण और संस्थाननिर्माण। जिस कर्म के उदय से जीवों के दोनों ही प्रकार के निर्माण होते हैं, उस कर्म की 'निर्माण' यह संज्ञा है।
(ध 6/66) निर्माणनाम शरीरवत् स्वस्वस्थानेषुस्वस्थितानुप्राञ्जलित्वं करोति। निर्माण नामकर्म शरीर के अनुसार स्व-स्व स्थानों में शरीरावयवों का उचित निर्माण करता है।
(क.प्र./38) यन्निमित्तात्परिनिष्पत्तिस्तन्निर्माणम्। जिसके निमित्त से शरीर के अंगोपांगों की रचना होती है वह निर्माण नामकर्म है।
(स.सि.8/11) नेत्रादिक जिस ठिकाने चाहिए तिस ही ठिकाने निपजावै ,सो स्थान निर्माण है। जो नेत्रादिक का प्रमाण चाहिये तितने ही निपजावै,सो प्रमाण निर्माण है। विशेष - यदि प्रमाणनिर्माणनामकर्म न हो, तोजंघा, बाहु ,सिर और नासिका
आदिका विस्तार और आयाम लोकके अन्ततक फैलनेवाले हो जावेंगे। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योकि उस प्रकारसे पाया नहीं जाता है। यदि संस्थाननिर्माण नामकर्म न हो, तो अंग, उपांग और प्रत्यंगसंकर और व्यतिकर स्वरूप हो जावेंगे। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा पाया नहीं
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