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कीरदि, तस्स कम्मस्स जसकित्तिसण्णा। जिस कर्म के उदय से विद्यमान या अविद्यमान गुणों का उद्भावन लोगों के द्वारा किया जाता है, उस कर्म की 'यशः कीर्ति' यह संज्ञा है। (ध 6/66) जस्स कम्मस्सुदएण जसो कित्तिज्जइजणवयेणतंजसगित्ति-णाम। जिसके के उदय से जनसमूह के द्वारा यश गाया जाता है अर्थात् कहा जाता है, वह यशः कीर्ति नामकर्म है।
(ध 13/366) यशस्कीर्तिनाम गुणकीर्तनं करोति। यशस्कीर्ति नामकर्म गुणकीर्तन करता है।
(क.प्र. 38) पुण्यगुणख्यापनकारणं यशः कीर्तिनाम। पुण्यगुणों की प्रसिद्धि का कारण यशः कीर्ति नामकर्म है। (स.सि.8/11) पुण्यगुणानांख्यापनं यस्योदयाद्भवति तद्यशस्कीर्तिनाम प्रत्येतव्यम्। जिसके उदय से पुण्य गुणों की प्रसिद्धि होवे वह यशस्कीर्ति नाम कर्म है।
(त.वृ.भा.8/11) बहुरि जाके उदयतै पुण्यरूप गुणनि की विख्यातता प्रकट होइ सो यशः कीर्तिनाम है।
(अ.प्र. 8/11) अयशः कीर्ति नामकर्म जस्स कम्मस्सोदएण संताणमसंताणं वा अवगुणाणं उन्मावणं जणेण कीरदे, तस्स कम्मस्स अजसयकित्तिसण्णा। जिस कर्म के उदय से विद्यमान या अविद्यमान अवगुणों का उद्भावन लोक द्वारा किया जाता है, उस कर्म की 'अयशः कीर्ति' यह संज्ञा है। (ध 6/66) जस्स कम्मस्सुदएण अजसो कित्तिज्जइलोएणतमजसगित्तिणाम। जिस कर्म के उदय से लोग अपयश कहते हैं वह अयशः कीर्ति नामकर्म है।
(ध 13/366) अयशस्कीर्तिनामदोषकीर्तनं करोति। अयशस्कीर्ति दोषकीर्तन (बदनामी ) करता है। (क.प्र. 430) यशकीर्ति नामकर्म के विपरीत फल वाला अयशस्कीर्ति नाम कर्म है।
(स.सि. 8/11) पापगुणख्यापनकारणमयशस्कीर्तिनाम वेदितव्यम्।
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