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आनुपूर्वी नामकर्म
जस्स कम्मस्सुदएण परिचत्तपुव्वसरीरस्स अगहिदुत्तर सरीरस्स जीवपदेसाणं रचणापरिवाडीहोदितं कम्ममाणुपुवीणाम। जिस जीव ने पूर्व शरीर को छोड़ दिया है, किन्तु उत्तर शरीर को अभी ग्रहण नहीं किया है उसके आत्मप्रदेशों की रचनापरिपाटी जिस कर्म के उदय से होती है वह आनुपूर्वी नामकर्म है।
(ध 13/364) पुव्वुत्तरसरीराणमंतरे एगदो तिण्णिसमए वट्टमाणजीवस्सजस्स कम्मस्सउदएणजीवपदेसाणं विसट्ठोसंठाण विसेसोहोदि, तस्स आणुपुब्वि त्ति सण्णा। पूर्व और उत्तर शरीरों के अंतरालवर्ती एक, दो और तीन समय में वर्तमान जीव के जिस कर्म के उदय से जीवप्रदेशों का विशिष्ट आकार विशेष होता है, उस कर्म की 'आनुपूर्वी' यह संज्ञा है ।
(ध 6/56) स्वस्वगतिगमने विग्रहतोत्यक्तपूर्वशरीराकारं करोति। इसके कारण अपनी-अपनी गति में जाने के लिये विग्रहगति में पहले छोड़े गये शरीरका आकार होता है।
(क.प्र./30) पूर्वशरीराकाराविनाशोयस्योदयाद्भवति तदानुपूर्व्यनाम। जिसके उदय से पूर्व शरीर के आकार का विनाश नहीं होता है वह आनुपूर्व्य नामकर्म है।
(स.सि. 8/11) आनुपूर्वी में उदाहरण यदा छिन्नायुर्मनुष्यस्तिर्यग्वा पूर्वेण शरीरेण वियुज्यते तदैव नरकभवं प्रत्यभिमुखस्य तस्ययत्पूर्वशरीरसंस्थानाऽनिवृत्तिकारणमपूर्वशरीरपदेशपापणसामोपेतंच विग्रहगतावुदेति तन्नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम। जब मनुष्य या तिर्यंच जीव अपनी आयु समाप्त होने पर पूर्व शरीर से पृथक होता है उसी समय नरक भव के सम्मुख होने वाले उस जीव के जो पूर्व शरीर का आकार बना रहता है और नये शरीर के प्रदेशों को प्राप्त करने की सामर्थ्य होती है तथा जो विग्रहगति में मात्र उदय में आता है वह नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी नाम है।
(त.वृ. भा.8/11) विशेष-शंका-संस्थाननामकर्म से आकार-विशेष उत्पन्न होताहै। इसलिए
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