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________________ मृदुकनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं मउवभावो होदि तं मउवं णाम । जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के मृदुता होती है, उसे मुदुक नामकर्म कहते हैं । (ET 6/7537) गुरुक नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं गुरुअभावो होदि तं गुरुअंणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के गुरुता होती है, उसे गुरुक नामकर्म है। (ध 6 / 75आ) लघुक नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीर पोग्गलाणं लहुअभावो होदि तं लहुअं णाम जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के लघुता होती है, उसे लघुक नामकर्म है । (ध 6/75आ) स्निग्धनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं णिद्धभावो होदि तं णिद्धं णाम । जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के स्निग्धता होती है वह स्निग्धनामकर्म है । (T. 6/75 3TT) रुक्ष नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं लुक्खभावो होदि तं लुक्खं णाम । जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के रुक्षता होती है, वह रुक्ष नाम कर्म है । (ET 6/753πT) शीतनामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीर पोग्गलाणं सीदभावो होदि तं सीदं णाम । जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के शीतता होती है वह शीत नामकर्म है । (ध 6/75आ) उष्ण नामकर्म जस्स कम्मस्स उदएण सरीर पोग्गलाणं उसुणभावो होदि तं उसुणं णामा जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के उष्णता होती है, वह उष्ण नामकर्म है । (ET 6/75 37T) Jain Education International (80) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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