SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। स्पर्श नामकर्म जस्स कम्मस्सुदएण सरीरे फास णिप्फत्ती होदितं फासणाम। जिस कर्म के उदय से शरीर में स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म (ध 13/364) जस्स कम्मक्खंधस्सउदएणजीवसरीरेजाइपडिणियदो फासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्सफाससण्णा, कारणे कन्जुवयारादो। जिस कर्म स्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की कारण में कार्य के उपचार से 'स्पर्श' यह संज्ञा (ध 6/55) तत्तत्वस्वस्वशरीराणां स्वस्वस्पर्श करोति। स्पर्श नाम कर्म उस-उस अपने-अपने शरीरका अपना-अपना स्पर्श उत्पन्न करता है। (क.प्र./30) यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम। जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। (स.सि. 8/11) विशेष - यदि स्पर्शनामकर्म न हो, तो जीवका शरीर अनियत स्पर्शवाला होगा। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, कमलके स्वपुष्प, फल और कमलनाल आदिमें नियत स्पर्श पाया जाता है। (ध. 6/56) स्पर्श नामकर्म के भेद जंतं पासणामकर्म तं अट्ठविहं कक्खडणाम,मउवणामं, गुरुअणाम, लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणाम, उसुणणामं चेदि। जोस्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकार का है - कर्कशनामकर्म मृदुक नामकर्म, गुरूकनामकर्म, लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म,रुक्षनामकर्म,शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म । (ध 6/75) कर्कशनामकर्म जस्स कम्मस्सउदएणसरीरपोग्गलाणं कक्खडभावो होदितं कक्खडं णाम। जिस कर्म के उदय से शरीर संबंधी पुद्गलों के कर्कशता होती है, वह कर्कशनामकर्म है। (ध 6/75) (79) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy