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________________ आनुपूर्वी की परिकल्पना निरर्थक है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, शरीर-ग्रहण के प्रथम समय से लेकर ऊपर उदयमें आने वाले उस संस्थाननामकर्म का विग्रहरति के काल में उदयका अभाव पाया जाता है। यदि आनुपूर्वी नामकर्म न हो, तो विग्रहगति के कालमें जीव अनियत संस्थानवाला हो जायेगा, किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, जाति-प्रतिनियत संस्थान विग्रह कालमें पाया जाता है। (ध. 6/56) आनुपूर्वी के भेद जंतं आणुपुब्बीणाम कम्मतंचउब्विहं, णिरयगदिपाओग्गाणुपुव्वीणामं तिरिक्खगदिपाओग्गापुव्वीणाम मणुसगदिपाओग्गाणुपुव्वीणामं देवगदिपाओग्गाणुपुव्वीणामं चेदि । जो आनुपूर्वी नामकर्म है वह चार प्रकार का है - नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म, तिर्यग्गति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म, मनुष्यगति प्रयोग्यानुपूर्वी नामकर्म और देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म। (ध 6/76) नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी जस्स कम्मस्सउदएणणिरयगइंगयस्सजीवस्स विग्णहगईए वट्ठमाणयस्स णिरयगइपाओग्गसंठाणं होदितं णिरयगइपाओग्गाणुपुब्बीणाम। जिस कर्म के उदय से नरकगति को गये हुए और विग्रह गति में वर्तमान जीव के नरकगति के योग्य संस्थान होता है, वह नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म है। (ध 6/76) तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएण तिरिक्खगइंगयस्सजीवस्स विग्गहगईएवट्ठमाणयस्स तिरिक्खगईपाओग्गसंठाणं होदितं तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवीणाम। जिस कर्म के उदय से तिर्यग्गति को गये हुए और विग्रह गति में वर्तमान जीव के नरकगति के योग्य संस्थान होता है, वह तिर्यग्गति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म है। (ध 6/76 आ) मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म जस्स कम्मस्सउदएण मणुसगई गयस्स जीवस्स विग्णहगईए वट्ठमाण- । (82) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002707
Book TitlePrakruti Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year1998
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size6 MB
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