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विंशतिः परिहारे षंढस्त्री आहारदिकवर्जिता एते । नवादिमयोगा
सूक्ष्मे
संज्वलनलोभयुताः ॥
अर्थ परिहारविशुद्धि संयम में उपर कथित चौबीस प्रत्ययों में से स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, आहारकद्विक को छोड़कर बीस आस्रव होते हैं। सूक्ष्मसांपराय संयम में आदि के नौ योग अर्थात् चार मनोयोग, चार वचनयोग, औदारिक काययोग एवं संज्वलन लोभ इस प्रकार ये दस आस्रव होते हैं ।
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एदे
पुण जहखादे संजलणलोहहीणा
कम्मण ओरालमिस्ससुजुत्ता । DRIT ||52||
एते पुनः यथाख्याते कार्मणौदारिकमिश्रसंयुक्ताः । संज्वलनलोभहीना
ज्ञेयाः ॥
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एगादसपच्चया
एकादशप्रत्यया
अर्थ यथाख्यात संयम में ऊपर कथित सूक्ष्मसांपरायसंयम के दस आस्रवों में कार्मणकाययोग, औदारिकमिश्र काययोग जोड़ने पर एवं संज्वलन लोभ कम करने पर ग्यारह आस्रव जानना चाहिए ।
तसऽसंजमवज्जिता सेसऽजमा णोकसाय देसजमे । अट्टंतिल्लकसाया आदिमणवजोग सगतीसा ||53||
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देशयमे ।
त्रसासंयमवर्जिताः शेषायमा नोकषाया अष्टौ अन्तिमकषाया आदिमनवयोगाः सप्तत्रिंशत् ॥
अर्थ - देशसंयम में त्रस अविरति को छोड़कर शेष ग्यारह अविरति, नौ नोकषाय, प्रत्याख्यान चतुष्क, संज्वलन चतुष्क, चार मनोयोग, चार वचनयोग इस प्रकार समस्त सेंतीस आस्रव होते हैं ।
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