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________________ संदृष्टि नं: 36 केवलज्ञान आस्रव 7 केवलज्ञान में 7 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - सत्य, अनुभय मनोयोग, सत्य, अनुभय वचनयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग गुणस्थान । सयोग केवली और अयोग केवली ये दो होते हैं। आम्रव आसव अभाव गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति 13. स्योग 7 [सत्य, अनुभय 7 [सत्य, अनुभयमनोयोग, केवली मनोयोग, सत्य, सत्य, अनुभयवचनयोग, अनुभयवचनयोग, औदारिकद्विक और औदास्किद्विक और कर्मणकाययोग] कार्मणकाययोग] | 14.अयोग केवली 7[उपर्युक्त अडमणवयणोरालं हारदुगं णोकसाय संजलणं। सामाइयछेदेसु य चउवीसा पचया होति ।।50॥ अष्टमनोवचनौदारिका आहारदिकं नोकषायाः संज्लनाः। सामायिकच्छेदयोश्च चतुर्विशतिः प्रत्यया भवन्ति । अर्थ - सामायिक, छेदोपस्थापना संयम में चार संज्वलन कषाय, नौ नोकषाय, चार मनोयोग, चार वचनयोग, आहारक काययोग, आहारकमिश्र काययोग इस प्रकार चौबीस आस्रव होते हैं। विंसदि सुहमे परिहारे संढित्थीहारदुगवज्जिया एदे। णवआदिमजोगा संजलणलोहजुदा ।।51।। [61] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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