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________________ आहारयदुगरहिया पणवण्ण असंजमे दु चक्खुदुगे। सव्वे णाणतिकहिदा अडदाला ओहिदंसणे णेया ।।54|| आहारकद्धिकरहिताः पंचपंचाशदसंयमे तु, चक्षुर्दि के। सर्वे, ज्ञानत्रिककथिता अष्टचत्वारिंशत् अवधिदर्शने ज्ञेया:।। अर्थ - असंयम आहारद्विक से रहित पचपन आस्रव होते हैं। अचक्षु, चक्षुदर्शन में सभी 57 आस्रव होते है। अवधिदर्शन में मति, श्रुत, अवधि ज्ञान में कथित अड़तालीस आम्रव जानना चाहिये। संदृष्टि नं. 37 सामायिक-छेदोपस्थापनासंयम आस्रव 24 सामायिक-छेदोपस्थापनासंयम में 24 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - योग 11 (मनोयोग 4, वचनयोग 4, काययोग 3 - औदारिक, आहारक, आहारकमिश्र काययोग), संज्वलन क्रोध आदि 4 कषाय, हास्य आदि 6 नोकषाय, स्त्रीवेद, पुंवेद, नपुंसकवेद । गुणस्थान प्रमत्तसंयत आदि 3 होते हैं। गुणस्थान आसव आस्रव अभाव | आस्रव व्युच्छित्ति | 2[गुणस्थानक्] 6 प्रात्त 24 [गुणस्थानक्त 7. अगत्त विस्त 22 [उपर्युक्त 24आहारकद्धिक 2[आहारकद्धिको & अपूकरण 6[गुणस्थानक्] 22[उपयुक्त 2[आहारकद्रिक 9.अनिवृत्त- करणभाग। 1[गुणस्थानवत] 16[गुणस्थानव 8[हास्य आदि 6नोक्षाय, आहारकद्रिका [63] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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