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________________ श्री देवसेनाचार्य देवसेन नाम के कई आचार्यो के उल्लेख मिलते हैं। एक देवसेन वे हैं जिन्होंने विक्रम सं. 990 में दर्शन सार नामक ग्रंथ की रचना की थी। आलाप पद्दति, लघु नयचक्र, आराधना सार और तत्त्वसार नामक ग्रंथ भी देव सेन के रा रचित हैं। इन सब ग्रंथों को दर्शन सार के रचयिता देव सेन की कृति माना जाता है। इनका बनाया हुआ एक भाव संग्रह नाम का ग्रंथ है । उसमें वे अपने विषय में इस प्रकार कहते हैं सिरिविमलसेण गणहरसिस्सो णामेण देवसेणुत्ति । ___ अबुहजणबोहणत्थं तेणेयं विरइयं सुत्तं ॥ इससे मालूम होता है कि इनके गुरु का नाम श्री विमलसेन गणधर (गणी) था । दर्शनसार नामक ग्रंथ के अंत में वे अपना परिचय देते हुए लिखते हैं : पुवायरियकयाई गाहाइं संचिऊ ण एयत्थ । सिरिदेवसेणगणिणा धाराए संवसंतेण ।।49।। रइओ दंसणसारो हारो भव्वाण णवसए नवए । सिरिपासणाहगेहे सुविसुद्धे माहसुद्धदसमीए 150॥ अर्थात् पूर्वाचार्यों की रची हुई गाथाओं को एक जगह संचित करके श्रीदेवसेन गणि ने धारा नगरी में निवास करते हुए पार्श्वनाथ के मंदिर में माघ सुदी दशवी विक्रम संवत् 990 को यह दर्शनसार नामक ग्रंथ रचा। इससे निश्चय हो जाता है कि उनका अस्तित्व काल विक्रम की दशवीं शताब्दि है । अपने अन्य किसी ग्रंथ में उन्होंने ग्रंथ रचना का समय नहीं दिया है। ___ यद्यपि इनके किसी ग्रंथ में इस विषय का उल्लेख नहीं है कि वे किस संघ के आचार्य थे , परंतु दर्शनसार के पढ़ने से यह बात स्पष्ट हो जाती है । कि वे मूलसंघ के आचार्य थे । दर्शनसार में उन्होंने काष्ठासंघ, माथुरसंघ और यापनीयसंघ आदि सभी दिगम्बर संघों की उत्पत्ति बतलाई है और उन्हें मिथ्यात्वी कहा है परंतु मूलसंघ के विषय में कुछ नहीं कहा है। अर्थात् उनके विश्वास के अनुसार यही मूल से चला आया हुआ असली संघ है । दर्शनसार की 43 वीं गाथा में लिखा है कि यदि आचार्य पद्यनन्दि (कुन्दकुन्द) सीमन्धर स्वामी द्वारा प्राप्त दिव्यज्ञान के द्वारा बोध न देते तो मुनिजन सच्चे मार्ग को कैसे जानते । इससे यह भी निश्चय हो जाता है कि वे श्री कुन्दकुन्दाचार्य की आम्नाय में थे। 茶茶举举举 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002704
Book TitleLaghu Nayachakrama
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherPannalal Jain Granthamala
Publication Year2002
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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