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कहना कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। कर्म की उपाधि की इसमें अपेक्षा है इसलिये यह कर्मोपाधि सापेक्ष है और अशुद्ध द्रव्य को विषय करने से इसका नाम अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
इस नय का मुख्य प्रयोजन यह है कि सांख्य मत के द्वारा जो यह माना गया है कि जीव सदा शिव है, उस कल्पना का निराकरण कर, वर्तमान की अशुद्ध अवस्था से छूट कर, शुद्ध अवस्था की प्राप्ति के लिए प्रयत्न रत रहना ही जीव का पुरूषार्थ है।
उत्पाद - व्यय सापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिकनय उप्पादवयविमिस्सा सत्ता गहिऊण भणइ तिदयत्तं । दव्वस्स एयसमये जो हु असुद्धो हवे विदिओ ।।22||
उत्पादव्ययविमिश्रां सत्तांगृहीत्वा भणति त्रितयत्वम्।
द्रव्यस्यैकसमये यो ह्यशुद्धो भवेद्वितीयः ।। 22।।
अर्थ - जो नय उत्पाद व्यय के साथ मिली हुई सत्ता को ग्रहण करके द्रव्य को एक समय में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रुप कहता है वह अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
विशेषार्थ - वस्तु नित्य और अनित्य धर्म रूप उभयात्मक है अर्थात् उत्पाद-व्यय ध्रौव्य से युक्त त्रयात्मक हैं इसीलिए वस्तु को उत्पाद व्यय सापेक्ष मानना उत्पाद-व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय का स्वरूप जानना चाहिये। यह नय एक ही समय में उत्पाद -व्यय धौव्यात्मक द्रव्य है , ऐसा स्वीकार करता है।
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