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________________ व्यवहार्जु सूत्रौ द्विविकल्पो शेषा हि एकैके । उक्ता इह नयभेदा उपनयभेदानपि प्रभणामः ।।14।। अर्थ - द्रव्यार्थिक नय के दस , पर्यायार्थिक नय के छह - नैगम नय के तीन, संग्रह नय , व्यवहार और ऋजुसूत्र नय के दो-दो तथा शेष शब्द, समभिरुढ़ और एवंभूत नय एक - एक रूप ही हैं। इस प्रकार नय के भेद कहे गये। उपनय के भेद आगे कहते हैं। विशेषार्थ - पूर्व की गाथाओं में नैगमादि नयों के जो 9 भेद कहे गये हैं , उनके प्रभेदो का कथन इस गाथा में किया गया है । द्रव्यार्थिक नय के दस, पर्यायार्थिक नय के छह, नैगम के तीन, संग्रह , व्यवहार और ऋजुसूत्र नय के दो-दो भेद, शेष शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नय एक-एक रूप ही जानना चाहिए। इस प्रकार समुदित रुप से नयों के कुल 28 प्रभेद जानना चाहिए। _उपनयों के भेद-प्रभेद सब्भूयमसब्भूयं उवयरियं चेव दुविह सब्भूयं । तिविहं पि असब्भूयं उवयरियं जाण तिविहं पि।।15।। सद्भूतमसद्भूतमुपचरितं चैव द्विविधं सद्भूतं । त्रिविधमप्यसद्भूतमपचरितंजानीहि त्रिविधमपि।।15।। अर्थ - उपनय तीन हैं- सद्भूत, असद्भूत और उपचरित । सद्भूत नय के दो भेद हैं, असद्भूत नय के तीन भेद हैं और उपचरित के भी तीन भेद विशेषार्थ - नयों के प्रभेदों का कथन करने के पश्चात् उपनयों के प्रभेदों का कथन इस कारिका में किया गया है। प्रथमतः उपनय तीन भेद रूप 13 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002704
Book TitleLaghu Nayachakrama
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherPannalal Jain Granthamala
Publication Year2002
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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