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________________ उसका निश्चय कराता है । वह शब्दनय है यह शब्दनय लिंग, संख्या, काल, कारक, पुरुष और उपग्रह के व्यभिचार को दूर करता है । पुल्लिंग के स्थान में स्त्रीलिंग का और स्त्रीलिंग के स्थान में पुल्लिंग का कथन करना आदि लिंग-व्यभिचार है । जैसे 'तारका स्वातिः' स्वाति नक्षत्र तारका है । यहां पर तारका शब्द स्त्रीलिंग और स्वाति शब्द पुल्लिंग है अतः स्त्री लिंग शब्द के स्थान पर पुल्लिंग का कथन करने से लिंग व्यभिचार है अर्थात् तारका शब्द स्त्रीलिंग है उसके साथ में पुल्लिंग स्वाति शब्द का प्रयोग किया गया है जो व्याकरण अनुसार ठीक नहीं है । एकवचन आदि के स्थान पर द्विवचन आदि का कथन करना संख्या-व्यभिचार है। जैसे 'नक्षत्रं पुनर्वसू' नक्षत्र है। यहां पर नक्षत्र शब्द एकवचनान्त और पुनर्वसू शब्द द्विवचनान्त है, इसलिये एकवचन के साथ में द्विवचन का कथन करने से संख्या व्यभिचार है । भूत आदि काल के स्थान में भविष्यत् आदि काल का कथन करना काल व्यभिचार है। जैसे - 'विश्वदृश्वास्य पुत्रो जनिता' जिसने समस्त विश्व को देख लिया है ऐसा इसको पुत्र होगा । यहाँ पर 'विश्वदृश्वा' शब्द भूत कालीन है और 'जनिता' यह भविष्यत्कालीन है । अतः भविष्य अर्थ के विषय में 'भूत कालीन' प्रयोग करना काल व्यभिचार है । एक कारक के स्थान पर दूसरे कारक के प्रयोग करने को साधन व्यभिचार कहते हैं। उत्तमपुरुष के स्थान पर मध्यमपुरुष और मध्यमपुरुष के स्थान पर उत्तमपुरुष आदि के प्रयोग करने को पुरुष व्यभिचार कहते है। इस प्रकार जितने भी लिंग आदि व्यभिचार है वे सभी अयुक्त है, क्योंकि अन्य अर्थ का अन्य अर्थ के साथ सम्बन्ध नहीं हो सकता। इसलिये जैसा लिंग हो, जैसी संख्या हो और साधन हो उसी के अनुसार शब्दों का कथन करना उचित हैं। | 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002704
Book TitleLaghu Nayachakrama
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherPannalal Jain Granthamala
Publication Year2002
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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