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ब्रह्माहेमचंद्रविरचित 118) समुदित छ: सौ तेरासी वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् अंगांशधर ज्ञान को धारण करने वाले अर्हद् (नाम) के मुनि हुए।
आयरिउ भद्दवाहो अटुंगमहणिमित्तजाणयरो। णिण्णासइ कालवसेसचरिमो हु णिमित्तओ होदि।।801
अर्थ :- अष्टांग महानिमित्त के ज्ञानी आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) चरम निमित्तधर हुए। इनके पश्चात् कोई भी निमित्त ज्ञानी नहीं हुआ।
उचिंते गिरिसिहरे घरसेणो घरइ वयसमिदिगुत्ती। चंदगुहाइणिवासी भवियहु तसु णमहु पयजुयलं 181||
अग्गायणीयणाम पंचमवत्थुगदकम्मपाहुडया। पयडिडिदिअणुभागो जाणंति पदेसबंधोवि 182||
अर्थ :- व्रत, समिति, गुप्ति को धारण करने वाले ऊर्जयत (गिरनार) गिरि की शिखर पर चन्द्र गुफा में निवास करने वाले महामुनि धरसेन हुए। वे अग्रायणीय पूर्व के पंचम वस्तु के कर्म प्राभृत के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बंध के ज्ञाता थे। भव्य जीव उनके चरण युगल को नमस्कार करो।
जं जाणेइ सुदंतं विहुभुयबलि पुप्फयंतणामजई। धरसेण हु अवसाणे सुददेसधरा य विण्णि मुणी ॥83||
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