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________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित___ अर्थ :- आचार्य धरसेन ने श्रुत की परम्परा का मूल विच्छेद होते हुए जानकर योग्य भूतबलि और पुष्पदंत नाम के दो यतियों को उस कर्म प्राभृत का अध्ययन कराया। इस प्रकार आचार्य धरसेन के समाधि मरण के पश्चात् श्रुत के अंगांशी ज्ञान को धारण करने वाले दो मुनि हुए। गुणजीवादिपरूवण खुल्लयसामित्तवंधणामाय। वेयसवग्गणखंडा छट्टो महबंधु जाणेह ।।84|| एवं छह अहियारा तीससहस्साणुसुत्तरेरहिया। अप्पमई होति णरा तो पुच्छय लेहिओ गंथो।।85|| अर्थ :- जीव के गुणस्थान की प्ररूपणा करने वाला प्रथम खण्ड जीवट्ठाण, दूसरा खुद्दाबन्ध, तीसरा बंधसामित्तविचय, चौथा वेदना, पंचम वर्गणा और छट्म खण्ड महाबंध तीस हजार श्लोकों से सुशोभित जानना चाहिए। आगामी काल में मनुष्य अल्पमति को धारण करने वाले होंगे इसलिए भूतबलि-पुष्पदंत मुनिराजों ने प्राप्त हुए श्रुत ज्ञान को प्रश्नोत्तर शैली में ग्रंथ रूप से लिपिबद्ध किया। भूयबलिपुप्फयंतो चउविहसंघेण संजुदो तत्थ। जिट्ठसियपंचमिदिणे पुत्थयपडिठावणा विहिया 186।। अट्टविहा कयपूया तद्दिणि सुयपंचमीदि संजादा। सुदविणएणं लब्भइ अचलंपि केवलं णाणं ॥87|| [41] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002703
Book TitleShruta Skandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2002
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, canon, & Agam
File Size3 MB
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