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ब्रह्महेमचंद्रविरचित : साधुओं को पीछी, कमण्डलु कवली (ज्ञानोपकरण विशेष) और पुस्तकादि जो जिस काल में योग्य हो उसकी प्ररूपणा करता है तथा अयोग्य सेवन और योग्य सेवन न करने के प्रायश्चित्त की प्ररूपणा करता है।
__ कल्प्याकल्प्य प्रकीर्णक - द्रव्य क्षेत्र काल और भाव की अपेक्षा मुनियों के लिए यह योग्य है और यह अयोग्य है, इस तरह इन सबका कथन करता है। साधुओं के जो योग्य है और जो योग्य नहीं है उन दोनों की ही द्रव्य क्षेत्र और काल का आश्रय कर प्ररूपणा करता है। साधुओं के और साधुओं के जो व्यवहार करने योग्य है और जो व्यवहार करने योग्य नहीं है इन सबका द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव का आश्रय कर कल्प्याकल्प्य प्रकीर्णक कथन करता है।
महाकल्प्य प्रकीर्णक - दीक्षा ग्रहण, शिक्षा, आत्मसंस्कार, सल्लेखना और उत्तमस्थानरूप आराधना को प्राप्त हुए साधुओं के जो करने योग्य है उसका द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय लेकर प्ररूपणा करता है। काल और संहनन का आश्रयकर साधुओं के योग्य द्रव्य और क्षेत्र आदि का वर्णन करता है। उत्कृष्ट संहननादि विशिष्ट द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव का आश्रय लेकर प्रवृत्ति करने वाले जिनकल्पी साधुओं के योग्य त्रिकालयोग आदि अनुष्ठान का और स्थविरकल्पी साधुओं की दीक्षा शिक्षा, गणपोषण, आत्म संस्कार, सल्लेखना आदि का विशेष वर्णन है। भरत ऐरावत और विदेह तथा वहाँ रहने वाले तिर्यंच व मनुष्यों के देवों के एवं अन्य द्रव्यों के भी स्वरूप का छह कालों का आश्रय कर निरूपण करता है।
पुण्डरीक प्रकीर्णक - भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क,
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