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ब्रह्माहेमचंद्रविरचितविदेह में साधने योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का आश्रय कर ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, तपविनय, उपचारविनय इन पाँचों विनयों के लक्षण भेद और फल का कथन विनय प्रकीर्णक में है।
कृतिकर्मप्रकीर्णक - जिनदेव, सिद्ध, आचार्य और उपाध्याय को वन्दना करते समय जो क्रिया की जाती है, वह कृतिकर्म है। उस कृतिकर्म के आत्माधीन होकर किये गये तीन बार प्रदक्षिणा, तीन अवनति, चार नमस्कार और बारह आवर्त आदि रूप लक्षण भेद तथा फल का वर्णन कृतिकर्म प्रकीर्णक करता है।
दशवैकालिक प्रकीर्णक - विशिष्ट काल विकाल है। उसमें जो विशेषता होती है वह वैकालिक है। वे वैकालिक दस है। उन दस वैकालिकों का दशवैकालिक नाम का अर्थाधिकार (प्रकीर्णक) है। यह द्रव्य क्षेत्र काल और भाव का आश्रय कर आचारविषयक विधि व भिक्षाटन विधि की प्ररूपणा करता है।
उत्तराध्ययन प्रकीर्णक - जिसमें अनेक प्रकार के उत्तर पढ़ने को मिलते हैं वह उत्तराध्ययन प्रकीर्णक है। चार प्रकार के उपसर्गों (देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यंचकृत, अचेतनकृत) और बाईस परीषहों (क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन ये बाईस परीषह है) के सहन करने के विधान का और उनके सहन करने के फल का तथा इस प्रश्न के अनुसार यह उत्तर होता है। इसका वर्णन करता है।
कल्प्यव्यवहार प्रकीर्णक - कल्प्य नाम योग्य का है और व्यवहार नाम आचार का है। योग्य आचार का नाम कल्प्यव्यवहार है।
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