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________________ ब्रह्महेमचंद्रविरचित मनुष्यों - तिर्यंचों आदि के शुभ-अशुभ नामों में रागद्वेष का निरोध करना नाम सामायिक है । सुन्दर स्थापना या असुन्दर स्थापना में रागद्वेष का निरोध करना स्थापना सामायिक है । जैसे कुछ मूर्तियाँ सुस्थित रहती है । सुप्रमाण तथा सर्व अवयवों से सम्पूर्ण होती है तदाकाररूप तथा मन को आह्लाद करने वाली होती है तो कुछ मूर्तियाँ दु:स्थित प्रमाणरहित, सर्व अवयवों से परिपूर्णता रहित, अतदाकार भी होती हैं ( मूर्ति निर्माता के यहाँ दोनों ही प्रकार की जिनमूर्तियाँ देखी जा सकती हैं) इनमें रागद्वेष का अभाव होना स्थापना सामायिक है। चतुर्विंशतिस्तवप्रकीर्णक चतुर्विंशतिस्तवप्रकीर्णक अर्थाधिकार उस उस काल सम्बन्धी चौबीस तीर्थंकरों की वन्दना करने की विधि, उनके नाम, संस्थान, उत्सेध, पाँच महाकल्याणक, चौंतीस अतिशयों के स्वरूप और तीर्थंकरों की वन्दना की सफलता का वर्णन करता है । वंदनाप्रकीर्णक - वंदनाप्रकीर्णक एक जिनेन्द्र देव सम्बन्धी और उन एक जिनेन्द्र देव के अवलम्बन से जिनालय सम्बन्धी वंदना का वर्णन करता है। - प्रतिक्रमणप्रकीर्णक प्रतिक्रमणप्रकीर्णक दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, ऐर्यापथिक और औत्तमस्थानिक इस प्रकार प्रतिक्रमण सात प्रकार का है । इन सभी प्रतिक्रमणों का वर्णन करता है । - Jain Education International विनयप्रकीर्णक विनय पाँच प्रकार का है ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, तपविनय और औपचारिकविनय । जो पुरुष गुणों में अधिक है उनमें नम्रवृत्ति का रखना विनय है । भरत, ऐरावत व [31] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002703
Book TitleShruta Skandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBramha Hemchandra, Vinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2002
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, canon, & Agam
File Size3 MB
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