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1. नाऽऽलस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निद्दया । (समणसुतं 24 )
2.
थम्भा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽलस्सएण य सिक्खा न लब्भइ । (समणसुतं27 )
3. सूरो न दिणेण विणा दिणो विन हु सूरविरहम्मि । (बजालग्ग में जीवन मूल्य 24)
प्रयोग वाक्य
4. पडिवन्नं जेण समं पुव्वणिओएण होइ जीवस्स दूरट्ठिओ न दूरे जह चंदो कुमुयसंडाणं । ( वज्जालग्ग में जीवन मूल्य 30)
5. सीलेण विणा विसया णाणं विणासंति । (अष्टपाहुड 33 )
6. जम्मं मरणेण समं संपज्जइ
(कार्तिकेयानुप्रेक्षा 1)
7. तो दसरहेण सिग्धं, पउमो सोमित्तिणा समं वुत्तो । (दसरह पव्वज्जा - 72 )
8. बहुयदिवसेसु देसो, जो वोलीणो
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कुमारसीहेहिं । सो भरहेण पवन्नो, दियहेहिं छहि अयत्तेणं ॥ (रामनिग्गमण - भरहरज्जविहाणं - 43)
9. सो पिउणा सह गेहे आगओ । (विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं - 6)
( 38 )
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आलस्य के साथ सुख नहीं रहता है, निद्रा के साथ विद्या संभव नहीं होती है ।
(नियम 5 )
अहंकार से, क्रोध से, प्रमाद से, रोग से तथा आलस्य से शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती। (नियम 3 और पंचमी विभक्ति नियम 2 )
दिन के बिना सूर्य नहीं होता है तथा दिन भी निश्चय ही सूर्य के अभाव में नहीं होता है । (नियम 6)
जैसे चन्द्रमा और (चन्द्र-विकासी) कमल-समूहों के (मध्य में) (किया हुआ) (स्नेह) (होता है), (वैसे ही) पूर्व संबंध से जीव का जिसके साथ किया हुआ (स्नेह) होता है, (वह जीव) दूरस्थित ( भी ) दूर नहीं (होता है ) ।
(नियम 5 )
शील (चरित्र) के बिना विषय ज्ञान को नष्ट कर देते हैं। (नियम 6)
जन्म मरण के साथ संलग्न है। (नियम 5 )
तब दशरथ के द्वारा लक्ष्मण के साथ राम शीघ्र ( बुलाए गये) । (नियम 5 )
कुमार सिंहों के द्वारा जो देश बहुत दिनों में पार किया (था) वह भरत के द्वारा आसानी से छः दिनों में पाया गया (पार किया गया)। (नियम 4 )
वह पिता के साथ घर में आया । (नियम 5 )
प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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