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3. कारण व्यक्त करने वाले शब्दों में तृतीया होती है, जैसे - (i) सो अवराहेण लुक्कइ (वह अपराध के कारण छिपता है।)
तुमं उजमेण धणं लभसि/आदि (तुम प्रयत्न के कारण धन प्राप्त करते
हो।)
विजाअ/विजाइ/विजाए पइट्ठा होइ (विद्या के कारण प्रतिष्ठा होती
है।)
(iv) सो अज्झयणेण वसइ/वसए/आदि (वह अध्ययन के कारण रहता है।
बसता है।) 4. फल प्राप्त या कार्य सिद्ध होने पर कालवाचक और मार्गवाचक शब्दों में
तृतीया होती है। (i) सो दहहिं/दसहि दिणेहिं/दिणेहि गंथं पढीअ (उसने दस दिनों में
ग्रन्थ पढ़ा।) मित्तो तीहिं/तीहि/आदि दिणेहिं/दिणेहि णिरोगो होहीअ (मित्र तीन
दिनों में निरोग हुआ।) (iii) एकेण कोसेण कजं होहीअ (एक कोस पर कार्य हुआ।) सह, सद्धिं, समं (साथ) अर्थ वाले शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती
5.
है।
(i) सो मित्तेण सह गच्छइ/गच्छए/आदि (वह मित्र के साथ जाता है।) (ii) लक्खणो रामेण समं गच्छिंसु (लक्ष्मण राम के साथ गया था।)
(ii) हणुवंतो रामेण सद्धिं सोहइ (हनुमान राम के साथ शोभता है।) 6. "विणा' शब्द के साथ द्वितीया, तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है।
जलेण (3/1) / जलत्तो (5/1) जलं (2/1) विणा णरो न जीवइ/जीवए।
आदि (जल के बिना मनुष्य नहीं जीता है।) 7. तुल्य (समान, बराबर) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया अथवा
षष्ठी होती है।
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प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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