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13. जामेव दिसिं पाउभूआ तामेव दिहिं पडिगया। (कुम्मे 13)
निम्नलिखित वाक्यों का प्राकृत में अनुवाद कीजिए । जहाँ कहीं विभक्तियों का अन्तर परिवर्तन नियम समान है, वहाँ दोनों प्रकार से अनुवाद कीजिए ।
1. उसके द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है। 2. वह बालक से पथ पूछता है। 3. वह गाय से दूध दूहता है। 4. वह पेड़ से फूल इकट्ठा करता है। 5. मुनि बालक के लिए धर्म का उपदेश देता है। 6. वह उससे धन माँगता है। 7. तुम अग्नि से भोजन पकाओ । 8. राजा मंत्री को नगर में ले जाता है। 9. मैं देवालय जाता हूँ। 10. वह रात्रि में मित्र को याद करता है । 11. सज्जन के बिजली की तरह अस्थिर क्रोध होता है । 12. देव स्वर्ग में रहते हैं । 13. कृष्ण के चारों ओर बालक है । 14. नगर के समीप नदी है। 15. उसके बिना मैं जाता हूँ। 16. नदी और नगर के बीच में वन है । 17. बालक की ओर तुम स्नेह रखते हो । 18. वह बारह वर्ष तक रहता है। 19. मैं कोस भर चलता हूँ। 20. नदी नगर से दूर है। 21. समुद्र के निकट लंका है। 22. वह दु:खपूर्वक जीता है ।
2.
जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गये। (नियम 3-4 )
तृतीया विभक्ति - करण कारक
अपने कार्य की सिद्धि में जो कर्ता के लिए अत्यन्त सहायक होता है, वह करण कहा जाता है । उसे तृतीया विभक्ति में रखा जाता है । जैसे
(i)
(ii)
(ii)
रामो बाणेन रावणं मारइ/मारए/आदि (राम वाण से रावण को मारता हैं ।)
कर्मवाच्य और भाववाच्य के कर्ता में तृतीया होती है ।
(i)
पुत्तो जलेन वत्थं पच्छालइ / पच्छालए/ आदि ( पुत्र जल से वस्त्र धोता है ।)
-
नरिंदो कहं सुणइ / आदि ( कर्तृवाच्य ) - नरिंदेण/नरिदेणं कहा सुणिज्जइ/सुणी अइ /आदि (कर्मवाच्य )
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रिंदो हस/ आदि (कर्तृवाच्य ) - नरिंदेण/नरिदेणं हसिज्जइ / आदि (भाववाच्य)
प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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