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9. पडि (की ओर, की तरफ) के योग में द्वितीया होती है। जैसे -
मायं (2/1) पडि तुम सनेहं करसि/करसे/आदि (माता की ओर तुम स्नेह रखते
हो)। 10. समय एवं मार्गवाची शब्दों में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे - (i) सो पंच दिणाणि/दिणाइं/आदि (2/2) खेत्तं सिंची/सिंचिंसु
(वह पाँच दिन तक खेत सींचता रहा।) (ii) सो कोसं (2/1) चलइ (वह कोस भर चलता है।)
यहाँ पंच दिणाणि - द्वितीया विभक्ति में रखा गया है और कोसं भी द्वितीया विभक्ति में है। (यह प्रयोग उस समय होता है जब निरन्तरता हो,
समाप्ति नहीं)। 11. दूर (नपु.) व अंतिय (समीप) (नपु.) तथा इनके समानार्थक शब्द
द्वितीया विभक्ति में रखे जाते है। जैसे - (i) गामत्तो/गामाओ/आदि दूरं (2/1) णई अत्थि। (गाँव से दूर नदी है।) (ii) सरिआ/सरिआइ/सरिआए अंतियं (2/1)जई वसइ/वसए/वसदि।
आदि (नदी के समीप यति बसता है।) 12. विणा के योग में द्वितीया होती है। जैसे -
मायं विणा सिक्खा न होइ/होदि/आदि (माता के बिना शिक्षा नहीं होती है।) 13. कभी-कभी संज्ञा शब्द की द्वितीया विभक्ति का एक वचन क्रियाविशेषण
के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे - सो सुहं विहरइ/विहरए विहरदि/आदि (वह सुखपूर्वक रमण करता है।)
प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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