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षष्ठी विभक्ति सप्तमी विभक्ति
अधिकरण कारक संबोधन
अंतः कहा जा सकता है कि व्याकरण का सैद्धान्तिक पक्ष कारक है किन्तु विभक्ति व्यवहारिक पक्ष का द्योतक है। सम्प्रेषण के लिए विभक्तियों का प्रयोग ही किया जाता है।
प्राकृत में कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण ये छ: कारक हैं। प्राकृत के वैयाकरणों ने सम्बन्ध को कारक नहीं माना है और न षष्ठी विभक्ति के रूपों को ही पृथक् स्थान दिया है। षष्ठी के रूप चतुर्थी के समान ही होते हैं।
. छह कारकों का बोध कराने वाली विभक्तियाँ हैं। इतना होने पर भी कारक और विभक्ति में भेद है। कर्त्ता में सर्वदा प्रथमा और कर्म में द्वितीया विभक्ति नहीं होती है, परन्तु कर्ता में तृतीया और कर्म में प्रथमा विभक्ति भी होती है। जैसे - 'रावणो रामेण हओ' इस वाक्य में 'हनन' क्रिया का वास्तविक कर्ता 'राम' है, पर राम प्रथमा विभक्ति में नहीं है, तृतीया विभक्ति में रखा गया है। इसी प्रकार 'हनन' क्रिया का वास्तवकि कर्म रावण है, उसे द्वितीया विभक्ति में न रखकर प्रथमा विभक्ति में रखा गया है।
प्रथमा विभक्ति : कर्ता कारक 1. जिस व्यक्ति या वस्तु के विषय में कुछ कहा जाता है उसे वाक्य का कर्ता
कहते है और वह प्रथमा विभक्ति में रखा जाता है। जैसे - नरिंदो परमेसरं पणमइ (राजा परमेश्वर को प्रणाम करता है) इस वाक्य में 'पणमइ' क्रिया को करने वाला 'नरिंद' कर्ता है और प्रथमा विभक्ति में है। इस तरह से
कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। 2. कर्मवाच्य में वाक्य बनाते समय कर्तृवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती
है। मायाए/मायाइ/मायाअ कहा सुणिज्जइ/सुणीअइ/ आदि (माता के द्वारा कथा सुनी जाती है)। यहाँ कहा प्रथमा विभक्ति में है। इस वाक्य का कर्तृवाच्य हुआ माया कहं सुणइ/सुणए/सुणदि आदि।
प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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