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8.1 निम्नलिखित विधा के शब्दों के संधि विधान को जानना उपयोगी है। दीर्घ
स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर हो जाता है। (हेम - 1/84)
निम्नलिखित कुछ उदाहरण दिये जा रहे है --- (i) विरह + अग्गि = विरहाग्गि > विरहग्गि (आ > अ) = विरह की अग्नि
मुणि + इंद = मुणींद > मुणिंद (ई > इ) = मुनियों में श्रेष्ठ
चमू + उच्छाह = चमूच्छाह > चमुच्छाह (ऊ > उ) = सेना का उत्साह (ii) देस + इड्ढि = देसेड्ढि > देसिड्डि (ए > इ) = देश का वैभव
पुप्फ + उज्जाण = पुप्फोजाण > पुप्फुज्जाण (ओ > उ) = फूलों का बगीचा । 8.2 आदि स्वर 'इ' के आगे यदि संयुक्त अक्षर आ जाए तो उस आदि 'इ' का
'ए' विकल्प से होता है। जैसे - सिन्दूर अथवा सेन्दूर। कहीं कहीं पर 'इ' के आगे संयुक्त अक्षर होने पर 'इ' का 'ए' नहीं होता। जैसे - चिन्ता (यहाँ 'इ' का 'ए' नहीं हुआ), इच्छा (यहाँ 'इ' का 'ए' नहीं हुआ)। इनको साहित्य एवं कोश के आधार से जानना चाहिए। (हेम - 1/85) न + इच्छसि = णेच्छसि > णिच्छसि (ए > इ)। किन्तु प्रयोगों में 'नेच्छसि'
मिलता है। यह अनियमित प्रयोग है। 9) प्राकृत में सन्धि वैकल्पिक है अनिवार्य नहीं। अक्षर परिवर्तन तथा लोप के
नियम का उपयोग करते समय अर्थ भ्रम न हो, इसका ध्यान रखना जरूरी है। जैसे - पुप्फयंत + आइरिय = पुप्फयंताइरिय अथवा पुप्फयंत आइरिय
(प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ, पाठ-14, पैरा 5 )
(8)
प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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